Friday, 6 November 2015

15 लाख पुरे 15 लाख कश्मीरी हिन्दुओ ने घाटी छोड़ी थी और कई जान गवाँ चुके थे।

शाम होते ही लाउडस्पीकर की आवाज तेज हो जाती थी... "काफिरों घाटी छोडो कश्मीर हमारा है" की नारेबाजी करते हुए भीड़ की भीड़ घुसती थी हिन्दू मुहल्लों में तब बस हत्या करके नही छोड़ा जाता था बल्कि स्त्रियों के स्तनों को काट कर उसपे अपना धर्मिक चिन्ह बनाया जाता था।
बच्चों को दिवारों पर पटक पटक कर मार कर उनके शवों को गली के बिजली के तारो पर टांगा जाता था ताकि खौफ पैदा हो और बस्ती हिन्दुओ से खाली हो ।
रात के अँधेरे में हिन्दू सिक्ख की बस्ती में से पुरुषो को एक तरफ खड़ा कर के "ए0के0-47"की मैगजीनें खाली कर दी जाती थीं।
औरतो को बिना कपड़ो के रोते हुए छोड़ा जाता था, उनके साथ दानवों की तरह हरकत करते, बलात्कार करते और अंततः काट कर या जिन्दा जलाकर मार दिया जाता था।
घरों के बाहर पोस्टर लगते थे "हमे काफिरो के घर चाहिए उनकी औरतो और बच्चियो के साथ"।
15 लाख पुरे 15 लाख कश्मीरी हिन्दुओ ने घाटी छोड़ी थी और कई जान गवाँ चुके थे। किसी यूरोप के देश की आबादी के बराबर थी ये आबादी।
90 के दशक के अख़बार खून से सने हुए आते थे सुबह।
लेकिन लेकिन सेकुलरिज्म की डायन एवार्ड वापसी के लिए बस एक अख़लाक़ की मौत का इंतजार कर रही थी ||

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