Tuesday, 27 December 2016

वीर गाथा उन सुकुमारों की जिनकी शहादत के समय (5 वर्ष और 7 वर्ष) अभी दूध के दाँत भी नहीं गिरे थे

माता गुजरी और और गुरुपुत्र छोटे साहिबजादे के बलिदान को यह राष्ट्र सदा स्मरण करता रहेगा |
Sirhind Di Deewar : History & Story in Hindi : यह वीर गाथा उन सुकुमारों की है जिनकी शहादत के समय (5 वर्ष और 7 वर्ष) अभी दूध के दाँत भी नहीं गिरे थे। जिनके लिए सरदार पांछी ने कहा है-
“यह गर्दन कट तो सकती है मगर झुक नहीं सकती।
कभी चमकौर बोलेगा कभी सरहिन्द की दीवार बोलेगी।।”
छोटे साहिबजादों और माता गुजरी जी की शहीदी
सूरा सो पहचानिये, जो लरै दीन के हेतु ।।
पुरजा पुरजा कटि मरै, कबहु न छाडै खेतु ।। (सलोक कबीर जी)
यह वीर गाथा उन सुकुमारों की है जिनकी शहादत के समय अभी दूध के दाँत भी नहीं गिरे थे।
सन :1705 ईस्वी 20 दिसम्बर: की मध्यरात्रि का समय श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी की श्री आनंदपुर साहिब जी में यह अन्तिम रात्रि थी। कल प्रातः न जाने वह कहाँ होंगे और उनके बच्चे कहाँ ? सरसा नदी पार करते-करते कई झड़पें हुई, जिसमें कई सिक्ख मारे गए। कई नदी में फिसलकर गिर पड़े। पाँच सौ में से केवल चालीस सिक्ख बचे जो गुरू साहिब के साथ रोपड़ के समीप चमकौर की गढ़ी में पहुँच गए। साथ दो बड़े साहिबजादे भी थे। इस गढ़बढ़ी में गुरू साहिब जी के दो छोटे साहिबजादे माता गुजरी जी सहित गुरू साहिब से बिछुड़ गए। माता सुन्दरी और माता साहिब कौर, भाई मनी सिंह जी के साथ दिल्ली की ओर चले गए। जिसे जिधर मार्ग मिला चल पड़ा।
सरसा नदी की बाढ़ के कारण श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी का परिवार काफिले से बिछुड़ गया। माता गुजर कौर (गुजरी जी) के साथ उनके दो छोटे पोते, अपने रसोइये गँगा राम के साथ आगे बढ़ती हुए रास्ता भटक गईं। उन्हें गँगा राम ने सुझाव दिया कि यदि आप मेरे साथ मेरे गाँव सहेड़ी चलें तो यह सँकट का समय सहज ही व्यतीत हो जाएगा। माता जी ने स्वीकृति दे दी और सहेड़ी गाँव गँगा राम रसोइये के घर पहुँच गये।
माता गुजरी जी के पास एक थैली थी, जिसमें कुछ स्वर्ण मुद्राएँ थीं जिन पर गंगा राम की दृष्टि पड़ गई। गँगू की नीयत खराब हो गई। उसने रात में सोते हुए माता गुजरी जी के तकिये के नीचे से स्वर्ण मुद्राओं की थैली चुपके से चुरा ली और छत पर चढ़कर चोर चोर का शोर मचाने लगा। माता जी ने उसे शान्त करने का प्रयास किया किन्तु गँगू तो चोर-चतुर का नाटक कर रहा था।
इस पर माता जी ने कहा गँगू थैली खो गई है तो कोई बात नहीं, बस केवल तुम शाँत बने रहो। किन्तु गँगू के मन में धैर्य कहाँ ? उन्हीं दिनों सरहिन्द के नवाब वजीद ख़ान ने गाँव-गाँव में ढिँढोरा पिटवा दिया कि गुरू साहिब व उनके परिवार को कोई पनाह न दे। पनाह देने वालों को सख्त सजा दी जायेगी और उन्हें पकड़वाने वालों को इनाम दिया जाएगा।
गँगा राम पहले तो यह ऐलान सुनकर भयभीत हो गया कि मैं खामख्वाह मुसीबत में फँस जाऊँगा। फिर उसने सोचा कि यदि माता जी व साहिबज़ादों को पकड़वा दूँ तो एक तो सूबे के कोप से बच जाऊँगा तथा दूसरा इनाम भी प्राप्त करूँगा। गँगू नमक हराम निकला। उसने मोरिंडा की कोतवाली में कोतवाल को सूचना देकर इनाम के लालच में बच्चों को पकड़वा दिया।
थानेदार ने एक बैलगाड़ी में माता जी तथा बच्चों को सरहिन्द के नवाब वज़ीर ख़ान के पास कड़े पहरे में भिजवा दिया। वहाँ उन्हें सर्द ऋतु की रात में ठण्डे बुरज में बन्द कर दिया गया और उनके लिए भोजन की व्यवस्था तक नहीं की गई। दूसरी सुबह एक दुध वाले (मोती महरा) ने माता जी तथा बच्चों को दूध पिलाया।
नवाब वज़ीर खान जो गुरू गोबिन्द सिंह जी को जीवित पकड़ने के लिए सात माह तक सेना सहित आनन्दपुर के आसपास भटकता रहा, परन्तु निराश होकर वापस लौट आया था, उसने जब गुरू साहिब के मासूम बच्चों तथा वृद्ध माता को अपने कैदियों के रूप में देखा तो बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अगली सुबह बच्चों को कचहरी में पेश करने के लिए फरमान जारी कर दिया।
दिसम्बर की बर्फ जैसी ठण्डी रात को, ठण्डे बुरज में बैठी माता गुजरी जी अपने नन्हें नन्हें दोनों पोतों को शरीर के साथ लगाकर गर्माती और सुलाने का प्रयत्न करती रहीं। माता जी ने भोर होते ही मासूमों को जगाया तथा स्नेह से तैयार किया। दादी-पोतों से कहने लगी ‘पता है ! तुम उस गोबिन्द सिंह ‘शेर’ गुरू के बच्चे हो, जिसने अत्याचारियों से कभी हार नहीं मानी। धर्म की आन तथा शान के बदले जिसने अपना सर्वत्र दाँव पर लगा दिया और इससे पहले अपने पिता को भी शहीदी देने के लिए प्रेरित किया था। देखना कहीं वज़ीर ख़ान द्वारा दिये गये लालच अथवा भय के कारण धर्म में कमजोरी न दिखा देना। अपने पिता व धर्म की शान को जान न्यौछावर करके भी कायम रखना।
दादी, पोतों को यह सब कुछ समझा ही रही थी कि वज़ीर ख़ान के सिपाही दोनों साहिबजादों को कचहरी में ले जाने के लिए आ गये। जाते हुए दादी माँ ने फिर सहिबजादों को चूमा और पीठ पर हाथ फेरते हुए उन्हें सिपाहियों के सँग भेज दिया। कचहरी का बड़ा दरवाजा बँद था। साहिबज़ादों को खिड़की से अन्दर प्रवेश करने को कहा गया।
रास्ते में उन्हें बार बार कहा गया था कि कचहरी में घुसते ही नवाब के समक्ष शीश झुकाना है। जो सिपाही साथ जा रहे थे वे पहले सर झुका कर खिड़की के द्वारा अन्दर दाखिल हुए। उनके पीछे साहबज़ादे थे। उन्होंने खिड़की में पहले पैर आगे किये और फिर सिर निकाला। थानेदार ने बच्चों को समझाया कि वे नवाब के दरबार में झुककर सलाम करें।
किन्तु बच्चों ने इसके विपरीत उत्तर दिया और कहा: यह सिर हमने अपने पिता गुरू गोबिन्द सिंह के हवाले किया हुआ है, इसलिए इस को कहीं और झुकाने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।
कचहरी में नवाब वज़ीर खान के साथ और भी बड़े बड़े दरबारी बैठे हुए थे। दरबार में प्रवेश करते ही जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह दोनों भाईयों ने गर्ज कर जयकारा लगाया– ‘वाहिगुरू जी का खालसा, वाहिगुरू जी की फतेह’। नवाब तथा दरबारी, बच्चों का साहस देखकर आश्चर्य में पड़ गये।
एक दरबारी सुच्चानँद ने बच्चों से कहा: ऐ बच्चों ! नवाब साहब को झुककर सलाम करो।
साहिबज़ादों ने उत्तर दिया: ‘हम गुरू तथा ईश्वर के अतिरिक्त किसी को भी शीश नहीं झुकाते, यही शिक्षा हमें प्राप्त हुई है’।
नवाब वज़ीर खान कहने लगा: ओए ! तुम्हारा पिता तथा तुम्हारे दोनों बड़े भाई युद्ध में मार दिये गये हैं। तुम्हारी तो किस्मत अच्छी है जो मेरे दरबार में जीवित पहुँच गये हो। इस्लाम धर्म को कबूल कर लो तो तुम्हें रहने को महल, खाने को भाँति भांति के पकवान तथा पहनने को रेशमी वस्त्र मिलेंगे। तुम्हारी सेवा में हर समय सेवक रहेंगे। बड़े हो जाओगे तो बड़े-बड़े मुसलमान जरनैलों की सुन्दर बेटियों से तुम्हारी शादी कर दी जायेगी। तुम्हें सिक्खी से क्या लेना है ? सिक्ख धर्म को हमने जड़ से उखाड़ देना है। हम सिक्ख नाम की किसी वस्तु को रहने ही नहीं देंगे। यदि मुसलमान बनना स्वीकार नहीं करोगे तो कष्ट दे देकर मार दिये जाओगे और तुम्हारे शरीर के टुकड़े सड़कों पर लटका दिये जायेंगे ताकि भविष्य में कोई सिक्ख बनने का साहस ना कर सके।’’ नवाब बोलता गया। पहले तो बच्चे उसकी मूर्खता पर मुस्कराते रहे, फिर नवाब द्वारा डराने पर उनके चेहरे लाल हो गये।
इस बार जोरावर सिंह दहाड़ उठा: हमारे पिता अमर हैं। उसे मारने वाला कोई जन्मा ही नहीं। उस पर अकालपुरूष (प्रभु) का हाथ है। उस वीर योद्धा को मारना असम्भव है। दूसरी बात रही, इस्लाम कबूल करने की, तो हमें धर्म जान से अधिक प्यारी है। दुनियाँ का कोई भी लालच व भय हमें धर्म से नहीं गिरा सकता। हम पिता गुरू गोबिन्द सिंह के शेर बच्चे हैं तथा शेरों की भान्ति किसी से नहीं डरते। हम इस्लाम धर्म कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। तुमने जो करना हो, कर लेना। हमारे दादा श्री गुरू तेग बहादुर साहिब ने शहीद होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु धर्म से विचलित नहीं हुए। हम उसी दादा जी के पोते हैं, हम जीते जी उनकी शान को आँच नहीं आने देंगे।
सात वर्ष के जोरावर सिंह तथा पाँच वर्ष के फतेह सिंह के मुँह से बहादुरों वाले ये शब्द सुनकर सारे दरबार में चुप्पी छा गई। नवाब वज़ीर ख़ान भी बच्चों की बहादुरी से प्रभावित हुए बिना न रह सका। परन्तु उसने काज़ी को साहिबज़ादों के बारे में फतवा,सजा देने को कहा।
काज़ी ने उत्तर दिया: कि बच्चों के बारे में फतवा, दण्ड नहीं सुनाया जा सकता।
इस पर सुच्चानन्द बोला: इतनी अल्प आयु में ये राज दरबार में इतनी आग उगल सकते हैं तो बड़े होकर तो हकूमत को ही आग लगा देंगे। ये बच्चे नहीं, साँप हैं, सिर से पैर तक ज़हर से भरे हुए। एक गुरू गोबिन्द सिंह ही बस में नहीं आते तो जब ये बड़े हो गये तो उससे भी दो कदम आगे बढ़ जायेंगे। साँप को पैदा होते ही मार देना चाहिए। देखो, इनका हौसला ! नवाब का अपमान करने से नहीं झिझके। इनका तो अभी से काम तमाम कर देना चाहिए। नवाब ने बाकी दरबारियों की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा कि कोई और सुच्चानन्द की बात का समर्थन करता है अथवा नहीं,परन्तु सभी दरबारी मूर्तिव्रत खड़े रहे। किसी ने भी सुच्चा नन्द की हाँ में हाँ नहीं मिलाई।
तब वज़ीर ख़ान ने मालेरकोटले के नवाब से पूछा: ‘‘आपका क्या ख्याल है ? आपका भाई और भतीजा भी तो गुरू के हाथों चमकौर में मारे गये हैं। लो अब शुभ अवसर आ गया है बदला लेने का, इन बच्चों को मैं आपके हवाले करता हूँ। इन्हें मृत्युदण्ड देकर आप अपने भाई-भतीजे का बदला ले सकते हैं।’’
मालेरकोटले का नवाब पठान पुत्र था। उस पठान ने मासूम बच्चों से बदला लेने से साफ इन्कार कर दिया और उसने कहा: ‘‘इन बच्चों का क्या कसूर है ? यदि बदला लेना ही है तो इनके बाप से लेना चाहिए। मेरा भाई और भतीजा गुरू गोबिन्द सिंह के साथ युद्ध करते हुए रणक्षेत्र में शहीद हुए हैं, कत्ल नहीं किये गये हैं। इन बच्चों को मारना मैं बुज़दिली समझता हूँ। अतः इन बेकसूर बच्चों को छोड़ दीजिए।
मालेरकोटले का नवाब शेरमुहम्मद ख़ान चमकौर के युद्ध से वज़ीर ख़ान के साथ ही वापिस आया था और वह अभी सरहिन्द में ही था। नवाब पर सुच्चानन्द द्वारा बच्चों के लिए दी गई सलाह का प्रभाव तो पड़ा, पर वह बच्चों को मारने की बजाय इस्लाम में शामिल करने के हक में था। वह चाहता था कि इतिहास के पन्नों पर लिखा जाये कि गुरू गाबिन्द सिंह के बच्चों ने सिक्ख धर्म से इस्लाम को अच्छा समझा और मुसलमान बन गए।
अपनी इस इच्छा की पूर्ति हेतु उसने गुस्से पर नियँत्रण कर लिया तथा कहने लगा:बच्चों जाओ, अपनी दादी के पास। कल आकर मेरी बातों का सही-सही सोचकर उत्तर देना। दादी से भी सलाह कर लेना। हो सकता है तुम्हें प्यार करने वाली दादी तुम्हारी जान की रक्षा के लिए तुम्हारा इस्लाम में आना कबूल कर ले। बच्चे कुछ कहना चाहते थे परन्तु वज़ीद ख़ान शीघ्र ही उठकर एक तरफ हो गया और सिपाही बच्चों को दादी माँ की ओर लेकर चल दिए।
बच्चों को पूर्ण सिक्खी स्वरूप में तथा चेहरों पर पूर्व की भाँति जलाल देखकर दादी ने सुख की साँस ली। अकालपुरख का दिल से धन्यवाद किया और बच्चों को बाहों में समेट लिया। काफी देर तक बच्चे दादी के आलिँगन में प्यार का आनन्द लेते रहे। दादी ने आँखें खोलीं कलाई ढीली की, तब तक सिपाही जा चुके थे।
अब माता गुजरी जी आहिस्ता-आहिस्ता पोतों से कचहरी में हुए वार्तालाप के बारे में पूछने लगी। बच्चें भी दादी माँ को कचहरी में हुए वार्तालाप के बारे में बताने लगे। उन्होंने सुच्चानन्द की ओर से जलती पर तेल डालने के बारे भी दादी माँ को बताया। दादी माँ ने कहा, ‘‘शाबाश बच्चों ! तुमने अपने पिता तथा दादा की शान को कायम रखा है। कल फिर तुम्हें कचहरी में और अधिक लालच तथा डरावे दिये जाएँगे। देखना,आज की भाँति धर्म को जान से भी अधिक प्यारा समझना और ऐसे ही दृढ़ रहना। अगर कष्ट दिए जाएँ तो अकालपुरख का ध्यान करते हुए श्री गुरू तेग बहादुर साहिब और श्री गुरू अरजन देव साहिब जी की शहादत को सामने लाने का प्रयास करना।
भाई मतीदास, भाई सतीदास और भाई दयाला ने भी गुरू चरणों का ध्यान करते हुए मुस्कराते-मुस्कराते तन चिरवा लिया, पानी में उबलवा लिया और रूईं में लिपटवाकर जलकर शहीदी पायी थी। तुम्हारे विदा होने पर मैं भी तुम्हारे सिखी-सिदक की परिपक्वता के लिए गुरू चरणों में और अकालपुरख (परमात्मा) के समक्ष सिमरन में जुड़कर अरदास करती रहुँगी। यह कहते-कहते दादी माँ बच्चों को अपनी आलिँगन में लेकर सो गईं।
अगले दिन भी कचहरी में पहले जैसे ही सब कुछ हुआ, और भी ज्यादा लालच दिये गये तथा धमकाया गया। बच्चे धर्म से नहीं डोले। नवाब ने लालच देकर बच्चों को धर्म से फुसलाने का प्रयत्न किया। उसने कहा कि यदि वे इस्लाम स्वीकार कर लें तो उन्हें जागीरें दी जाएँगी। बड़े होकर शाही खानदान की शहज़ादियों के साथ विवाह कर दिया जाएगा। शाही खजाने के मुँह उनके लिए खोल दिए जाएँगे। नवाब का ख्याल था कि भोली-भाली सूरत वाले ये बच्चे लालच में आ जाएँगे। पर वे तो गुरू गोबिन्द सिंह के बच्चे थे, मामूली इन्सान के नहीं। उन्होंने किसी शर्त अथवा लालच में ना आकर इस्लाम स्वीकार करने से एकदम इन्कार कर दिया।
अब नवाब धमकियों पर उतर आया। गुस्से से लाल पीला होकर कहने लगा: ‘यदि इस्लाम कबूल न किया तो मौत के घाट उतार दिए जाओगे। फाँसी चढ़ा दूँगा। जिन्दा दीवार में चिनवा दूँगा। बोलो, क्या मन्जूर है– मौत या इस्लाम ?
ज़ोरावर सिंह ने हल्की सी मुस्कराहट होठों पर लाते हुए अपने भाई से कहा: ‘भाई,हमारे शहीद होने का अवसर आ गया है। ठीक उसी तरह जैसे हमारे दादा गुरू तेग बहादर साहिब जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में शीश देकर शहीदी पाई थी। तुम्हारा क्या ख्याल है ?
फतेह सिंह ने उत्तर दिया: ‘भाई जी, हमारे दादा जी ने शीश दिया पर धर्म नहीं छोड़ा। उनका उदाहरण हमारे सामने है। हमने खण्डे बाटे का अमृत पान किया हुआ है। हमें मृत्यु से क्या भय ? मेरा तो विचार है कि हम भी अपना शीश धर्म के लिए देकर मुगलों पर प्रभु के कहर की लानत डालें।
ज़ोरावर सिंह ने कहा: ‘‘हम गुरू गोबिन्द सिंह जैसी महान हस्ती के पुत्र हैं। जैसे हमारे दादा गुरू तेग बहादर साहिब जी शहीद हो चुके हैं। वैसे ही हम अपने खानदान की परम्परा को बनाए रखेंगे। हमारे खानदान की रीति है, ‘सिर जावे ताँ जावे, मेरा सिक्खी सिदक न जावे।’ हम धर्म परिवर्तन की बात ठुकराकर फाँसी के तख्ते को चूमेंगे।’
जोश में आकर फतेह सिंह ने कहा: ‘सुन रे सूबेदार ! हम तेरे दीन को ठुकराते हैं। अपना धर्म नहीं छोडंगे। अरे मूर्ख, तू हमें दुनियाँ का लालच क्या देता है ? हम तेरे झाँसे में आने वाले नहीं। हमारे दादा जी को मारकर मुगलों ने एक अग्नि प्रज्वलित कर दी है, जिसमें वे स्वयँ भस्म होकर रहेंगे। हमारी मृत्यु इस अग्नि को हवा देकर ज्वाला बना देगी।
सुच्चानन्द ने नवाब को परामर्श दिया कि बच्चों की परीक्षा ली जानी चाहिए। अतः उनको अनेकों भान्ति भान्ति के खिलौने दिये गये। बच्चों ने उन खिलौनों में से धनुष बाण, तलवार इत्यादि अस्त्र-शस्त्र रूप वाले खिलौने चुन लिए। जब उन से पूछा गया कि इससे आप क्या करोगे तो उनका उत्तर था युद्ध अभ्यास करेंगे। वजीर ख़ान ने चढ़दी कला के विचार सुनकर काज़ी के मन में यह बात बैठ गई कि सुच्चानन्द ठीक ही कहता है कि साँप के बच्चे साँप ही होते हैं। वजीर ख़ान ने काज़ी से परामर्श करने के पश्चात उसको दोबारा फतवा देने को कहा।
इस बार काज़ी ने कहा: बच्चे कसूरवार हैं क्योंकि बगावत पर तुले हुए हैं। इनको किले की दीवारों में चिनकर कत्ल कर देना चाहिए।
कचहरी में बैठे मालेरकोटले के नवाब शेर मुहम्मद ने कहा: नवाब साहब इन बच्चों ने कोई कसूर नहीं किया इनके पिता के कसूर की सज़ा इन्हें नहीं मिलनी चाहिए। काज़ी बोला: शेर मुहम्मद ! इस्लामी शरह को मैं तुमसे बेहतर जानता हूँ। मैंने शरह के अनुसार ही सजा सुना दी है।
तीसरे दिन बच्चों को कचहरी भेजते समय दादी माँ की आँखों के सामने होने वाले काण्ड की तस्वीर बनती जा रही थी। दादी माँ को निश्चय था कि आज का बिछोड़ा बच्चों से सदा के लिए बिछोड़ा बन जाएगा। परन्तु यकीन था माता गुजरी जी को कि मेरे मासूम पोते आज जीवन कुर्बान करके भी धर्म की रक्षा करेंगे। मासूम पोतों को जी भरकर प्यार किया, माथा चूमा, पीठ थपथपाई और विदा किया, बावर्दी सिपाहियों के साथ, होनी से निपटने के लिये।
दादी माँ टिकटिकी लगाकर तब तक सुन्दर बच्चों की ओर देखती रही जब तक वे आँखों से ओझल न हो गये। माता गुजरी जी पोतों को सिपाहियों के साथ भेजकर वापिस ठंडे बुरज में गुरू चरणों में ध्यान लगाकर वाहिगुरू के दर पर प्रार्थना करने लगी, हे अकालपुरख ! (परमात्मा) बच्चों के सिक्खी-सिदक को कायम रखने में सहाई होना। दाता ! धीरज और बल देना इन मासूम गुरू पुत्रों को ताकि बच्चे कष्टों का सामना बहादुरी से कर सकें।
तीसरे दिन साहिबज़ादों को कचहरी में लाकर डराया धमकाया गया। उनसे कहा गया कि यदि वे इस्लाम अपना लें तो उनका कसूर माफ किया जा सकता है और उन्हें शहजादों जैसी सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं। किन्तु साहिबज़ादे अपने निश्चय पर अटल रहे। उनकी दृढ़ता थी कि सिक्खी की शान केशों श्वासों के सँग निभानी हैं। उनकी दृढ़ता को देखकर उन्हें किले की दीवार की नींव में चिनवाने की तैयारी आरम्भ कर दी गई किन्तु बच्चों को शहीद करने के लिए कोई जल्लाद तैयार न हुआ।
अकस्मात दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व बाशल बेग अपने एक मुकद्दमें के सम्बन्ध में सरहिन्द आये। उन्होंने अपने मुकद्दमें में माफी का वायदा लेकर साहिबज़ादों को शहीद करना मान लिया। बच्चों को उनके हवाले कर दिया गया। उन्होंने जोरावर सिंह व फतेह सिंह को किले की नींव में खड़ा करके उनके आसपास दीवार चिनवानी प्रारम्भ कर दी।
बनते-बनते दीवार जब फतेह सिंह के सिर के निकट आ गई तो जोरावर सिंह दुःखी दिखने लगे। काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गए हैं और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जायेंगे। उनसे दुःखी होने का कारण पूछा गया तो जोरावर बोले मृत्यु भय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूँ कि मैं बड़ा हूं, फतेह सिंह छोटा हैं। दुनियाँ में मैं पहले आया था। इसलिए यहाँ से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है। फतेह सिंह को धर्म पर बलिदान हो जाने का सुअवसर मुझ से पहले मिल रहा है।
छोटे भाई फतेह सिंह ने गुरूवाणी की पँक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को साँत्वना दी:
चिंता ताकि कीजिए, जो अनहोनी होइ ।।
इह मारगि सँसार में, नानक थिर नहि कोइ ।।
और धर्म पर दृढ़ बने रहने का सँकल्प दोहराया। बच्चों ने अपना ध्यान गुरू चरणों में जोड़ा और गुरूबाणी का पाठ करने लगे। पास में खड़े काज़ी ने कहा– अभी भी मुसलमान बन जाओ, छोड़ दिये जाओगे। बच्चों ने काज़ी की बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया अपितु उन्होंने अपना मन प्रभु से जोड़े रखा।
दीवार फतेह सिंह के गले तक पहुँच गई काज़ी के सँकेत से एक जल्लाद ने फतेह सिंह तथा उस के बड़े भाई जोरावर सिंह का शीश तलवार के एक वार से कलम कर दिया। इस प्रकार श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के सुपुत्रों ने अल्प आयु मे ही शहादत प्राप्त की।
माता गुजरी जी बच्चे के लौटने की प्रतीक्षा में गुम्बद की मीनार पर खड़ी होकर राह निहार रही थीं। माता गूजरी जी भी छोटे साहिबजादों जी की शहीदी का समाचार सुनकर ठँडे बूर्ज में ही शरीर त्याग गईं यानि शहीदी प्राप्त की।
स्थानीय निवासी जौहरी टोडरमल को जब गुरू साहिब के बच्चों को यातनाएँ देकर कत्ल करने के हुक्म के विषय में ज्ञात हुआ तो वह अपना समस्त धन लेकर बच्चों को छुड़वाने के विचार से कचहरी पहुँचा किन्तु उस समय बच्चों को शहीद किया जा चुका था। उसने नवाब से अँत्येष्टि क्रिया के लिए बच्चों के शव माँगे।
वज़ीर ख़ान ने कहा: यदि तुम इस कार्य के लिए भूमि, स्वर्ण मुद्राएँ खड़ी करके खरीद सकते हो तो तुम्हें शव दिये जा सकते हैं। टोडरमल ने अपना समस्त धन भूमि पर बिछाकर एक चारपाई जितनी भूमि खरीद ली और तीनों शवों की एक साथ अँत्येष्टि कर दी।
यह सारा किस्सा गुरू के सिक्खों ने गुरू गोबिन्द सिंह को नूरी माही द्वारा सुनाया गया तो उस समय अपने हाथ में पकड़े हुए तीर की नोंक के साथ एक छोटे से पौधे को जड़ से उखाड़ते हुए उन्होंने कहा– जैसे मैंने यह पौध जड़ से उखाड़ा है, ऐसे ही तुरकों की जड़ें भी उखाड़ी जाएँगी।
फिर गुरू साहिब ने सिक्खों से पूछा: ‘मलेरकोटले के नवाब के अतिरिक्त किसी और ने मेरे बच्चों के पक्ष में आवाज़ उठाई थी ?
सिक्खों ने सिर हिलाकर नकारात्मक उत्तर दिया।
इस पर गुरू साहिब ने फिर कहा: ‘तुरकों की जड़ें उखड़ने के बाद भी मलेरकोटले के नवाब की जड़ें कायम रहेंगी, पर मेरे धर्म सिपाही एक दिन सरहिन्द की ईंट से ईंट बजा देंगे’। यह घटना 14 पौष तदानुसार 27 दिसम्बर 1705 ईस्वी में घटित हुई।
नोट: मलेरकोटले की जड़ें आज तक कायम हैं। बन्दा बहादुर ने 1710 में सचमुच "सरहिन्द शहर" की ईंट से ईंट बजा दी थी।
1. जिस कुल जाति कौम के बच्चे यूं करते हैं बलिदान।
उस का वर्तमान कुछ भी हो परन्तु भविष्य है महान। मैथिली शरण गुप्त
2. यह गर्दन कट तो सकती है मगर झुक नहीं सकती।
कभी चमकौर बोलेगा कभी सरहिन्द की दीवार बोलेगी।। सरदार पँछी

Monday, 26 December 2016

महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-


😎1... महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
😎2.... जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे । तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि- हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए ? तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना, जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ।”
लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था |
“बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं |
😎3.... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था|
कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
😎4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |
😎5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है, तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे, पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी|
लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |
😎6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |
😎7.... महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है, जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |
😎8.... महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं | इसी
समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है|
मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |
😎9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई।
आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |
😎10..... महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी, जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे । जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
😎11.... महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |
😎12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था । वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे ।
आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं, तो दूसरी तरफ भील |
😎13..... महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है, जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |
😎14..... राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके
मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|
😎15..... मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में
घूमे ।
😎16.... महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
महाराणा प्रताप के हाथी
की कहानी:
मित्रो, आप सब ने महाराणा
प्रताप के घोड़े चेतक के बारे
में तो सुना ही होगा,
लेकिन उनका एक हाथी
भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ।
रामप्रसाद हाथी का उल्लेख
अल- बदायुनी, जो मुगलों
की ओर से हल्दीघाटी के
युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है।
वो लिखता है की- जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी, तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी ।
एक तो खुद महाराणा
और दूसरा उनका हाथी
रामप्रसाद।
आगे अल बदायुनी लिखता है
की- वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था ।
वो आगे लिखता है कि-
उस हाथी को पकड़ने के लिए
हमने 7 बड़े हाथियों का एक
चक्रव्यूह बनाया और उन पर
14 महावतो को बिठाया, तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।
अब सुनिए एक भारतीय
जानवर की स्वामी भक्ति।
उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया ।
जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा।
रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने
और पानी दिया।
पर उस स्वामिभक्त हाथी ने
18 दिन तक मुगलों का न
तो दाना खाया और न ही
पानी पिया और वो शहीद
हो गया।
तब अकबर ने कहा था कि-
जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया,
 उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा.?
इसलिए मित्रो हमेशा अपने
भारतीय होने पे गर्व करो।
पढ़कर सीना चौड़ा हुआ हो
तो शेयर कर देना।

माँ ने एक शाम दिनभर की लम्बी थकान एवं काम के बाद जब डिनर बनाया

माँ ने एक शाम दिनभर की लम्बी थकान एवं काम के बाद जब डिनर बनाया
तो उन्होंने पापा के सामने एक प्लेट सब्जी और एक जली हुई रोटी परोसी।
मूझे लग रहा था कि इस जली हुई रोटी पर पापा कुछ कहेंगे, परन्तु पापा ने उस रोटी को आराम से खा लिया ।
हांलांकि मैंने माँ को पापा से उस जली रोटी के लिए "साॅरी" बोलते हुए जरूर सुना था।
और मैं ये कभी नहीं भूल सकता जो पापा ने कहा: "मूझे जली हुई कड़क रोटी बेहद पसंद हैं।"
देर रात को मैने पापा से पुछा, क्या उन्हें सचमुच जली रोटी पसंद हैं?
उन्होंने कहा- "तुम्हारी माँ ने आज दिनभर ढ़ेर सारा काम किया, ओर वो सचमुच बहुत थकी हुई थी।
और वैसे भी एक जली रोटी किसी को ठेस नहीं पहुंचाती परन्तु कठोर-कटू शब्द जरूर पहुंचाते हैं।
तुम्हें पता है बेटा - "जिंदगी भरी पड़ी है अपूर्ण चीजों से...अपूर्ण लोगों से... कमियों से...दोषों से...
मैं स्वयं सर्वश्रेष्ठ नहीं, साधारण हूँ
और शायद ही किसी काम में ठीक हूँ।
मैंने इतने सालों में सीखा है कि- "एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करना..
नजरंदाज करना..
आपसी संबंधों को सेलिब्रेट करना।"
मित्रों, जिदंगी बहुत छोटी है..
उसे हर सुबह-शाम दु:ख...पछतावे...
खेद में बर्बाद न करें।
जो लोग तुमसे अच्छा व्यवहार करते हैं, उन्हें प्यार करों और जो नहीं करते
उनके लिए दया सहानुभूति रखो
पसंद आये तो कृपया अपने मित्रों से
साँझा अवश्य कीजियेगा

जब दशम् गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने राष्ट्र के लिए एक हफ्ते में अपने 4 – 4 बेटे बलिदान कर दिए

इतिहास में बहुत कम मिसालें मिलेंगी ……. जब किसी बाप ने कौम के लिए ……. राष्ट्र के लिए …….. एक हफ्ते में अपने 4 – 4 बेटे बलिदान कर दिए हों ।
आज पूस का वो आठवां दिन था जब दशम् गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज के दो साहबजादे चमकौर साहब के युद्ध में बलिदान हो गए । बड़े साहबजादे श्री अजीत सिंह जी की आयु मात्र 17 वर्ष थी । और छोटे साहबजादे श्री जूझार सिंह जी की आयु मात्र 14 वर्ष थी ।
सिखों के आदेश (गुरुमत्ता) की पालना में गुरु साहब ने गढ़ी खाली कर दी और सुरक्षित निकल गए ।
पिछली रात माता गूजरी दोनों छोटे साहिबजादों के साथ गंगू के घर पे थीं ।
उधर चमकौर साहिब में युद्ध चल रहा था और इधर गनी खां और मनी खां ने माता गूजरी समेत दोनों छोटे साहिबजादों को गिरफ्तार कर लिया ।
अगले दिन यानि पूस की 9 को उन्हें सरहिंद के किले में ठन्डे बुर्ज में रखा गया ।
10 पूस को तीनों को नवाब वजीर खां की कचहरी में पेश किया गया ।
शर्त रखी …….इस्लाम कबूल कर लो ……वरना …….
वरना क्या ?????
मौत की सज़ा मिलेगी ……
पूस का 13वां दिन ……. नवाब वजीर खां ने फिर पूछा ……. बोलो इस्लाम कबूल करते हो ?
छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह जी आयु 6 वर्ष ने पूछा ……. अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न ?
वजीर खां अवाक रह गया ……. उसके मुह से जवाब न फूटा …….
तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें ……..
दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ ।
दीवार चीनी जाने लगी । जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा ……..
फ़तेह ने पूछा , जोरावर रोता क्यों है ?
जोरावर बोला , रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर कौम के लिए बलिदान तू पहले हो रहा है ……
उसी रात माता गूजरी ने भी ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए ।
गुरु साहब का पूरा परिवार ……. 6 पूस से 13 पूस …… इस एक सप्ताह में ……. कौम के लिए …… धर्म के लिए …… राष्ट्र के लिए बलिदान हो गया ।
जब गुरु साहब को इसकी सूचना मिली तो उनके मुह से बस इतना निकला …….
इन पुत्रन के कारने , वार दिए सुत चार ।
चार मुए तो क्या हुआ , जब जीवें कई हज़ार ।
मित्रो …… 22 दिसम्बर …….
दोनों बड़े साहिबजादों , अजीत सिंह और जुझार सिंह जी का बलिदान दिवस ……..
और आज 26 दिसम्बर को बाबा फ़तेह सिंह और बाबा ज़ोरावर सिंह जी का बलिदान दिवस ।
कितनी जल्दी भुला दिया हमने इस शहादत को ?
सुनी आपने कहीं कोई चर्चा ? किसी TV चैनल पे या किसी अखबार में …….
4 बेटे और माँ की बलिदान ……. एक सप्ताह में …….
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय !!!

Friday, 9 December 2016

हम भले ही भूल जाए पर 700 साल पूर्व जो बर्बरता हमारे पूर्वजो से झेली वो कम नहीं थी

सात सौ साल पहले सीरिया/इराक जैसे हालात थे भारत में
जो सीरिया/इराक आज हालात देख रहा हे उससे भयानक दृश्य भारत ने 700 साल पहले देखा था।
हम भले ही भूल जाए पर 700 साल पूर्व जो बर्बरता हमारे पूर्वजो से झेली वो कम नहीं थी :
1. मीर कसिम ने सिंध में रात को धोखे से घुस कर एक रात में 50000 से ज्यादा हिन्दुओ का कत्लेआम कर सिंध पर कब्ज़ा किया।
2. सोमनाथ मंदिर के अन्दर मोजूद 32500 ब्रह्मिनो के खून से मुहम्मद गजनवी ने परिसर को नहला दिया था।
3. सोमनाथ में लगी भगवान् की मूर्तियों को मुहम्मद गजनवी ने अपने दरबार और शोचालय के सीढियों में लगवा दिया था ताकि वो रोज उनके पैर नीचे आती रहे।
4. औरंगजेब के इस्लाम काबुल करवाने के खुले आदेश के बाद सबसे ज्यादा तबाही आई।
कुछ को जबरदस्तीसे मुस्लिम बनवाया गया जो आज त्यागी, राठोड, चौधरी, जट, राजावत, भाटी, मोह्यल नाम लगाकर घूम रहे हे।
5. औरंगजेब ने ब्रह्मिनो द्वारा इस्लाम कबूल ना करने पर उन्ह्र गर्म पानी में उबाल कर जिन्दा चमड़ी उतरवाने का फरमान जारी किया।
ब्रह्मिनो की शिखाए और जनेउ जलाकर औरंगजेब ने अपने नहाने का पानी गर्म किया।
6. मुहम्मद जलालुदीन (अकबर) ने हर हिन्दू राज्य जीतने पर वहा की लडकियों को उठवा दिया और मीनाबाजार और हरम में पंहुचा दी जाती हे।
7. अजयमेरु का सोमेश्वर नाथ शिव मंदिर तोड़कर अजमेर दरगाह खड़ी की गयी साथ ही वैष्णव मंदिर तोड़ ढाई दिन का झोपड़ा तयार किया गया।
इनका सबूत हे वहा लगी कलाकृतिया जिस पर हिन्दू देवी देवता स्वस्तिक आदि बने हुए हे।
8. अलाउदीन खिलजी की सेना से धरम और कुल की रक्षा करने के लिए चित्तौड़ की रानी पद्मिनी और 26000 राजपूत वीरंगानो ने अग्नि कुंद में कुदकर जोहर प्रथा निभाई।
9. बहादुर शाह जफ़र की चित्तौड़ पर आक्रमण के बाद फिर मुघ्लो से धर्म और स्वभिमान की रक्षा के लिए चितौड़ की रानी कर्णावती ने 18000 राजपूत स्त्रियों के साथ अग्निकुंड में कूद जोहर करना चाहा पर लकड़ी कम पड़ने के कारन बारूद के ढेर के साथ वीरांगनाओ ने खुद को उड़ा दिया।
10. मुहम्मद जलालुदीन के आक्रमण पर चित्तौड़ में फिर महारानी जयमल मेड़तिया ने 12000 राजपूत स्त्रियों के साथ अग्निकुंद में कूद जोहर किया।
एक समय था अरब के पर्शिया से लेकर इंडोनेशिया तक हिन्दू धरम अनुयायी थी कितने करोड़ लाखो की लाशे बिछा दी गयी, कितनी ही स्त्रियों ने बलिदान दिए, कितने लाखो मन्दिर टूटे, कितने तरह के जुल्म हुए अपने इतिहास को भूलने वाले एक सफल भविष्य नहीं बना सकते ।
जय श्री राम

Monday, 5 December 2016

पंडित नाथूराम गोडसे

निवेदन है की लेख पुरा पढ़े ..
प्रश्न :- मैं एक पढ़ा लिखा मुस्लिम हूँ l मेरी अपनी खुद की एक राजनीतिक सोच है और यदि मैं मोदी का विरोध करता हूँ तो मैं देशद्रोही कैसे हो गया ?
उत्तर :- मोदी जी ने अपनी शख्शियत ऐसी बनाई है की वो देशभक्ति का पर्यायवाची शब्द बन गये है l और जब कोई उनके विरोध में खड़ा होता है तो वो स्वतः अपने आप को देशद्रोहीयों की कतार खड़ा पाता है l
ऐसी परिस्थिति में वो और भी ज्यादा खिजकर मोदी विरोध करता है और मोदी विरोध करते करते देशविरोध की सीमा भी लांघ जाता है l
प्रश्न :- मोदी जी देशभक्ति का पर्याय कैसे है ?
उत्तर :- मोदी जी का आज तक का राजनीतिक जीवन निष्कलंक रहा है l
उन्होने हमेशा अपने राज्य और देश की भलाई के लिये काम किया है l
मोदी जी ने कोई भ्रष्टाचार नही किया
मोदी जी के पास अपनी कोई सम्पत्ति नही है l
मोदी जी का अपना खुद का कोई परिवार नही है l
मोदी जी के भाई बहन अत्यंत साधारण जीवन यापन करते है l
प्रश्न :- निष्कलंक !!!...लेकिन मोदी ने गुजरात में मुस्लिमों का कत्लेआम कराया था l वो ?
उत्तर :- दंगे हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होते है l और ये पहला या अंतिम दंगा नही था l इससे पहले भी महात्मा गाँधी की हत्या के बाद उनके अहिंसा और शान्ती के समर्थको ने 6000 मराठी ब्राह्मणों का महाराष्ट्र में कत्लेआम किया था l इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद भी हजारों सिखों का संहार किया गया था l कश्मीर में दस सालों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार करके उनको बेघर किया गया लेकिन मुस्लिमों की तरह कोई छाती नही पीटता l उत्तर प्रदेश में आये दिन कहीँ न कहीँ दंगा होता ही रहता है लेकिन मोदी जी ने जिस तरह से गुजरात में दंगा कंट्रोल किया उसके बाद कोई दंगा नहीँ हुआ l
प्रश :- लेकिन मोदी की विचारधारा rss वाली है उसे मैं क्यों स्वीकार करूँ ?
उत्तर :- पिछले 60 साल से राष्ट्रवादी लोग भी कॉंग्रेस की गली सड़ी झूठी विचारधारा को न चाहते हुए भी स्वीकार करते रहे है l और मोदी जी कोई डेमोक्रेसी को hijack करके तो P M बने नहीँ है l अब ये बदलाव स्वीकार करना ही होगा l और rss अन्य मुस्लिम तंजीमों की तरह कोई आतंकवादी संगठन तो है नहीँ और न ही कोई banned organisation है l
प्रश्न :- फ़िर हिंदू उनका विरोध क्यों करते है ?
उत्तर :- अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते या अपने कमअकल होने की वजह से l
प्रश :- ये कौन सी बात हुई की मोदी के विरोध में है तो वो कमअकल या गद्दार है ?
उत्तर :- जो हिंदू, मोदी rss का विरोध करते है वो कमअकल होने की वज़ह से इतिहास का सही अध्ययन नहीँ कर पाये और वर्तमान का सही विश्लेषण नहीँ कर पाते l
वो मंदबुद्धि होने के कारण नहीँ समझ पाते की राष्ट्रवाद क्यो ज़रूरी है
प्रश्न :- लेकिन ये राष्ट्र अकेले हिन्दुओं का नहीँ है हमारा भी है l
उत्तर :- नहीँ इस्लाम भारत का मूल धर्म नहीँ है l यह आयातित धर्म है l
प्रश्न :- लेकिन हम तो भारतीय मुसलमान है
उत्तर :- नहीँ आप लोगों को आइडेंटिटी crisis है l
प्रश्न :- अब ये identity क्राइसिस क्या है ?
उत्तर :- आइडेंटिटी क्राइसिस या दूसरे शब्दों मे परिचय अज्ञानता या परिचय संकट है l
और किस तरह ये परिचय अज्ञानता कुंठा का रुप धारण करके देश और समाज को एक लम्बे समय से सिर्फ और सिर्फ नुकसान पहुँचाती रही है इसको थोड़ा विस्तार से समझते है
बाहर से असभ्य दुर्दांत मुस्लिम आक्रांता किस तरह से भारत मे आये और यहाँ की संस्कृति को नष्ट किया ये एक विषय है दूसरा विषय है आज मौजूद उनके पैरोकारों का, जो जूठी आइडेंटिटी के साथ जी रहे है, उनके पूर्वजों का सच जो वो हमेशा नकारते है lआज मौजूद 20-25 करोड़ मुस्लिम वही है जिनके पूर्वजों को बलात तलवार की नोक पर मुस्लिम बनाया गया या ज़मीन और जागीरदारी का लालच देकर उनको मुस्लिम बनाया गया या वो मुस्लिम बने जिनको तथाकथित तौर अपने हिंदू समाज में नीचा स्थान प्राप्त था या
वो मुस्लिम बने जिन्होने अपने परिवार और समाज को अपने कृत्यों से नीचा दिखाया और उनका सामाजिक व पारिवारिक बहिष्कार किया गया l लेकिन अब मसला ये है की क्या आप इन सत्यों को आत्मसात करते है l
प्रश्न :- ये क्या बकवास है ?
उत्तर :- क्यों क्या ये सच नहीँ की महमूद गज़नवी गौरी तैमूर ...और न जाने कितने लुटेरे थे और वो सब इस्लाम को मानते थे l
प्रश्न :- तो अँगरेज़ भी तो इंडिया को लूटने आये थे l
उत्तर :- बिल्कुल, इसीलिए उनको हमने भगाया ना वापस
प्रश्न :- आपने नहीँ महात्मा गाँधी ने भगाया
उत्तर :- exactly, जब अँगरेज़ और मुस्लिम दोनो ही लुटेरे थे और दोनो ही बाहर से आये थे तो गाँधी जी सिर्फ अंग्रेजों से ही क्यों लड़े l और न केवल अंग्रेजों से लड़े बल्कि हमेशा हिंदू मुसलमानो में मुसलमानो का पक्ष लेते रहे इसीलिए पंडित नाथूराम गोडसे ने उनका वध किया था और इस विषय में एक पुस्तक भी है " "गाँधी वध क्यों "
गांधी वध क्यों एक ऐसी पुस्तक है जिससे डरकर कांग्रेस ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था गाँधी वध क्यों ?
क्या थी विभाजन की पीड़ा ?
विभाजन के समय हुआ क्या क्या ?
विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक पार्टियों दृष्टिकोण ?क्या थी पीड़ा पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की ... मदन लाल पाहवा और विष्णु करकरे की?
क्या थी गोडसे की विवशता ?
क्या गोडसे नही जानते थे की आम आदमी को मरने में और एक राष्ट्रपिता को मरने में क्या अंतर है ? क्या होगा परिवार का ?
कैसे कैसे कष्ट सहने पड़ेंगे परिवार और सम्बन्धियों को और मित्रों को ?
क्या था गांधी वध का वास्तविक कारण ?
क्या हुआ 30 जनवरी की रात्री को ... पुणे के ब्राह्मणों के साथ ?
क्या था सावरकर और हिन्दू महासभा का चिन्तन ? क्या हुआ गोडसे के बाद नारायण राव आप्टे का .. कैसी नृशंस फांसी दी गयी उन्हें l यह लेख पढने के बाद कृपया बताएं कैसे उतारेगा भारतीय जनमानस पंडित नाथूराम गोडसे जी का कर्ज....
आइये इन सब सवालों के उत्तर खोजें ....
पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रची जाती हैं.अन्दर ज्यादातर मरे हुए ही थे, गला कटे हुए lरेलगाड़ी के छप्पर पर बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस लेने भर की जगह बाकी थी l बैलगाड़िया ट्रक्स हिन्दुओं से भरे हुए थे, रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था,," आज़ादी का तोहफा " रेलगाड़ी में जो लाशें भरी हुई थी उनकी हालत कुछ ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन लाशों को भरकर उठाना पड़ा l ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत थी उन मृतदेहों की... भयानक बदबू......
सियालकोट से खबरे आ रही थी की वहां से हिन्दुओं को निकाला जा रहा हैं, उनके घर, उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए थे l मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले जाने पर रोक लगा दी थी. किसी भी गाडी पर हल्ला करके हाथ को लगे उतनी महिलाओं- बच्चियों को भगाया गया.बलात्कार किये बिना एक भी हिन्दू स्त्री वहां से वापस नहीं आ सकती थी ... बलात्कार किये बिना.....?
जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर रही थी....
डॉक्टर ने पूछा क्यों ???
उन महिलाओं ने जवाब दिया... हम आपको क्या बताये हमें क्या हुआ हैं ?
हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें भी पता नहीं हैं...उनके सारे शारीर पर चाकुओं के घाव थे.
"आज़ादी का तोहफा"
जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन स्थानों पर हिन्दू स्त्रियों की नग्न यात्राएं (धिंड) निकाली गयीं, बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया l
1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये, और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था, उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा जी का आग्रह था...क्योकि एक तिहाई भारत के तुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए था l
विधि मंडल ने विरोध किया, पैसा नहीं देगे....और फिर बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए.....पैसे दो, नहीं तो मैं मर जाउगा....एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं l
दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए... क्या यह हिंसा नहीं थी .. अहिंसक आतंकवाद की आड़ में
दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी, इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई
ताबा नहीं रहना चाहिए l निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे..क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं...
जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला, गटर के किनारे
रहो लेकिन छत के निचे नहीं l क्योकि... तुम हिन्दू हो....
4000000 हिन्दू भारत में आये थे,ये सोचकर की ये भारत हमारा हैं....ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलाने बिरला भवन जाते थे तब
गांधीजी माइक पर से कहते थे क्यों आये यहाँ अपने घर जायदाद बेचकर, वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके क्यों नहीं रहे ??
यही अपराध हुआ तुमसे अभी भी वही वापस जाओ..और ये महात्मा किस आशा पर पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने निकले थे ?
कैसा होगा वो मोहनदास करमचन्द गाजी उर्फ़ गंधासुर ... कितना महान ...
जिसने बिना तलवार उठाये ... 35 लाख हिन्दुओं का नरसंहार करवाया
2 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआऔर उसके बाद यह संख्या 10 करोड़ भी पहुंची l
10 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को खरीदा बेचा गया l
20 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया, तरह तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाओं के बाद
ऐसे बहुत से प्रश्न, वास्तविकताएं और सत्य तथा तथ्य हैं जो की 1947 के समकालीन लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ियों से छुपाये, हिन्दू कहते हैं की जो हो गया उसे भूल जाओ, नए कल की शुरुआत करो ...
परन्तु इस्लाम के लिए तो कोई कल नहीं .. कोई आज नहीं ...वहां तो दार-उल-हर्ब को दार-उल-इस्लाम में बदलने का ही लक्ष्य है पल.. प्रति पल
विभाजन के बाद एक और विभाजन का षड्यंत्र ...
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आपने बहुत से देशों में से नए देशों का निर्माण देखा होगा, U S S R टूटने के बाद बहुत से नए देश बने, जैसे ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान आदि ... परन्तु यह सब देश जो बने वो एक परिभाषित अविभाजित सीमा के अंदर बने l
और जब भारत का विभाजन हुआ .. तो क्या कारण थे की पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान बनाए गए... क्यों नही एक ही पाकिस्तान बनाया गया... या तो पश्चिम में बना लेते या फिर पूर्व में l
परन्तु ऐसा नही हुआ .... यहाँ पर उल्लेखनीय है की मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है की 1947 के समय में पंजाब की सीमा दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र तक होती थी ...
यानी की पाकिस्तान का बोर्डर दिल्ली के साथ होना तय था ... मोहनदास करमचन्द के अनुसार l
नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय हुआ .. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा l
पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे ...
उन्होंने फिर से मांग की ... की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं l
1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l
2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए .... कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए....
2. जो लाहोर से ढाका तक जाता हो ... (NH - 1)
3. जो दिल्ली के पास से जाता हो ...
4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो ... (10 Miles = 16 KM)
5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l
30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी ...मान लिया जायेगा l
तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में ...और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l
हुतात्मा का अर्थ होता है जिस आत्मा ने अपने प्राणों की आहुति दी हो .... जिसको की वीरगति को प्राप्त होना भी कहा जाता है l
यहाँ यह सार्थक चर्चा का विषय होना चाहिए की हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे जीने क्या एक बार भी नहीं सोचा होगा की वो क्या करने जा रहे हैं ?
किसके लिए ये सब कुछ कर रहे हैं ?
उनके इस निर्णय से उनके घर, परिवार, सम्बन्धियों, उनकी जाती और उनसे जुड़े संगठनो पर क्या असर पड़ेगा ?
घर परिवार का तो जो हुआ सो हुआ .... जाने कितने जघन्य प्रकारों से समस्त परिवार और सम्बन्धियों को प्रताड़ित किया गया l
परन्तु ..... अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास करमचन्द के कुछ अहिंसक आतंकवादियों ने 30 जनवरी, 1948 की रात को ही पुणे में 6000 ब्राह्मणों को चुन चुन कर घर से निकाल निकाल कर जिन्दा जलाया l
10000 से ज्यादा ब्राह्मणों के घर और दुकानें जलाए गए l
सोचने का विषय यह है की उस समय संचार माध्यम इतने उच्च कोटि के नहीं थे, विकसित नही थे ... फिर कैसे 3 घंटे के अंदर अंदर इतना सुनियोजित तरीके से इतना बड़ा नरसंहार कर दिया गया ....
सवाल उठता है की ... क्या उन अहिंसक आतंकवादियों को पहले से यह ज्ञात था की गांधी वध होने वाला है ?
जस्टिस खोसला जिन्होंने गांधी वध से सम्बन्धित केस की पूरी सुनवाई की... 35 तारीखें पडीं l
अदालत ने निरीक्षण करवाया और पाया हुतात्मा पनदिर नाथूराम गोडसे जी की मानसिक दशा को तत्कालीन चिकित्सकों ने एक दम सामान्य घोषित किया l पंडित जी ने अपना अपराध स्वीकार किया पहली ही सुनवाई में और अगली 34 सुनवाइयों में कुछ नहीं बोले ... सबसे आखिरी सुनवाई में पंडित जी ने अपने शब्द कहे ""
गाँधी वध के समय न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति मांगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी | नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था |इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी वध के सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायलय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दे दी। नाथूराम गोडसे ने न्यायलय के समक्ष गाँधी वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।--
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।--
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।-
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।--
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।-
6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।--
7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।--
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।-
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।-
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।-
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।-
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।-
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।--
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।-
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।-
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-
"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?
प्रश्न यह भी उठता है की पंडित नाथूराम गोडसे जी ने तो गाँधी वध किया उन्हें पैशाचिक कानूनों के द्वारा मृत्यु दंड दिया गया परन्तु नाना जी आप्टे ने तो गोली नहीं मारी थी ... उन्हें क्यों मृत्युदंड दिया गया ?
नाथूराम गोडसे को सह अभियुक्त नाना आप्टे के साथ १५ नवम्बर १९४९ को पंजाब के अम्बाला की जेल में मृत्यु दंड दे दिया गया। उन्होंने अपने अंतिम शब्दों में कहा था...
यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैंने वो पाप किया है और यदि यह पुन्य हिया तो उसके द्वारा अर्जित पुन्य पद पर मैं अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूँ
– पंडित नाथूराम गोडसे
आशा है कि लोग पंडित नाथूराम को समझे व् जानें। प्रणाम हुतात्मा को।
भारत माता की जय
"तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें!"
*अगर आप नाथूराम गोडसे का पूरा बयान पढ़ना चाहते है तो उनके द्वारा लिखित "गाँधी वध क्यों?"
अगर आप नाथूराम गोडसे के समर्थक है तो इस पोस्ट को और तक भी पहुँचाए। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगो तक सच्चाई पहुँचे। निश्चित ही एक दिन सत्य की विजय होगी।

Friday, 23 September 2016

Maa Kya hai kabhi samaj nahi aata.......nice story

Thursday, 28 July 2016

महाराणा मोकल

**जय श्री राम** मित्रो और गुरुजनों को सादर नमन अक्सर लोग मुझसे कहते हैं मैं इतिहास पे सिर्फ पोस्ट क्यों करती हूँ मैं इतिहास पे सिर्फ पोस्ट इसलिए करती हूँ हमारे ग़ुलाम हो चुके मानसिकता को बदलना हैं आनेवाली नस्ल दूषित इतिहास के बदले सच्चाई पढ़े की भारत ने कभी ग़ुलामी की ही नहीं मकॉलय ने अंग्रेज़ गवर्नर ह्यूगो को पत्र लिखते समय लिखे थे भारत की रीढ़ को तोडना हैं तो हिन्दुओं की गौरवशाली इतिहास को खत्म कर के इनको हमेशा के लिए इनकी नज़रों में लाचार हारा हुआ ग़ुलाम बनाना ज़रूरी हैं और इसी षड्यंत्र के तहत इतिहास में ग़ुलाम कर दिया गया हकीकत में जो न हो पाया वो इतिहास में कर दिया गया, दूषित कर दिया हमें गोरे अंग्रेजों से छुटकारा मिलने के बाद काले अंग्रेजों ने ग़ुलामी की परम्परा आगे रखते हुए भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद ने सिकंदर , अकबर लूटेरों को महान बता दिया और इस धरती के पूत महाराणा प्रताप , शिवाजी , लचित बोरफुकन, ललितादित्य मुक्तापिड़ और भी कई पुरखों के इतिहास गबकर दिए गए जिसे आज हम ढूंढ ढूंढ के आपके सामने लाते हैं , महाराणा मोकल के इतिहास
राणा लाखा की मृत्यु होने पर उसका 12 वर्षीय पुत्र मोकल मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसका जन्म रणमल की बहन हंसाबाई की कोख से हुआ था। मोकल की अल्पायु के कारण स्वर्गीय महाराणा लाखा का बड़ा पुत्र चूण्डा उसका अभिभावक बना रणमल्ल - ये मंडोवर के राव चूंडा के बड़े पुत्र थे | राव चूंडा ने किसी कारण से नाराज़ होकर रणमल्ल को मंडोवर से निकाल दिया | रणमल्ल ५०० सवारों सहित चित्तौड़ आए और यहीं रहने लगे | महाराणा लाखा के बड़े पुत्र कुंवर चूंडा ने जिद करके महाराणा को रणमल्ल की बहिन हंसाबाई से विवाह करने के लिए राजी किया ,कुंवर चूंडा ने प्रतिज्ञा की कि "हंसाबाई जी और महाराणा का जो भी पहला पुत्र होगा, वही मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठेगा और मैं उसकी सेवा में रहूंगा" इस प्रतिज्ञा के कारण कुंवर चूंडा को "मेवाड़ का भीष्म पितामह" भी कहा जाता है विवाह के १३ माह बाद महाराणा लाखा व हंसाबाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जो मोकल नाम से प्रसिद्ध हुए | कुंवर मोकल महाराणा लाखा के ८वें पुत्र थे , १४०६-०७ ई. में महाराणा लाखा का देहान्त हुआ (महाराणा लाखा के देहान्त का वर्ष १३९७ ई. बताना कर्नल जेम्स टॉड की गलती है व १४२० ई. बताना कवि लोगों की गलती है) | कुंवर चूंडा ने अपने छोटे भाई मोकल का हाथ पकड़कर उन्हें मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, रानी हंसाबाई जब सती होने जा रही थीं, तब कुंवर चूंडा ने उनको रोक लिया और कहा कि आपको बाईजीराज बनकर रहना चाहिए (राज करने वाले शासक की माता को बाईजीराज कहते हैं) | १४०७ ई. में महाराणा मोकल का राज्याभिषेक हुआ ,महाराणा मोकल की उम्र कम होने के कारण राज्य का सारा काम कुंवर चूंडा की देख-रेख में होता देख कुछ सर्दारों ने महाराणा और उनकी माता हंसाबाई के कान भरने शुरु किये ,बाईजीराज हंसाबाई ने कुंवर चूंडा से कहा कि आप मेवाड़ छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जावें, तो ठीक रहेगा ,कुंवर चूंडा अपने सभी छोटे भाईयों समेत मेवाड़ से चले गए, सिवाय राघवदास के | राघवदास कुंवर चूंडा के छोटे भाई व महाराणा लाखा के दूसरे बड़े पुत्र थे | कुंवर चूंडा ने राघवदास को महाराणा मोकल का संरक्षक नियुक्त किया | हालांकि महाराणा मोकल के दिमाग पर केवल उनके मामा रणमल्ल की बात ही असर करती थी | राज्य का सारा काम रणमल्ल ही करता था | १४१० ई. में मंडोवर के राव चूंडा का देहान्त हुआ और उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हुआ, राव चूंडा के बड़े बेटे रणमल्ल ने कई राठौड़ साथियों और महाराणा मोकल की मेवाड़ी फौज लेकर मंडोवर पर अधिकार किया ,इस लड़ाई में रणमल्ल के भतीजे नरबद की एक आँख फूट गई | महाराणा मोकल उसे चित्तौड़ ले आए और कायलाणा का पट्टा जागीर में दिया |
नागौर के हाकिम फीरोज़ खां ने ६०,००० सैनिकों की सेना लेकर मेवाड़ पर चढाई की महाराणा मोकल भी सामना करने ५०६०मेवाड़ी फौज के साथ निकले और गाँव जोताई के चौगान में पड़ाव डाला रात के वक्त फीरोज खां ने हमला कर दिया | महाराणा को एेसी धोखेबाजी की बिल्कुल भनक तक न थी | महाराणा का घोड़ा मारा गया | डोडिया धवल के पोते सबलसिंह ने अपना घोड़ा महाराणा को दिया और खुद वीरगति को प्राप्त हुए | महाराणा मोकल पराजित होकर चित्तौड़ आ गए इस युद्ध में २,००० मेवाड़ी सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए फीरोज खां कुल मेवाड़ को लूटते हुए मालवा की तरफ निकला |
महाराणा मोकल इस पराजय का जवाब देना जरुरी समझकर १२,००० मेवाड़ी फौज के साथ निकले फीरोज़ खां भी सादड़ी और प्रतापगढ़ के पहाड़ों की तरफ आया और जावर में पड़ाव डाला , जावर में दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसमें फीरोज़ खां बुरी तरह पराजित होकर भाग निकला (चित्तौड़ के समिद्धेश्वर महादेव मन्दिर पर इस विजय की प्रशस्ति है), महाराणा मोकल ने जहांजपुर में दूसरी बार फीरोज़ खां को शिकस्त दी(महाराणा की इस विजय का उल्लेख एकलिंग जी के मन्दिर के दक्षिणद्वार की प्रशस्ति में है) १‍४३२ ई.
म्लेच्छ अहमदशाह ने १,१‍२,००० ‍बड़ी फौज के साथ मेवाड़ पर चढाई की उसने डूंगरपुर, देलवाड़ा, केलवाड़ा वगैरह मेवाड़ी इलाके लूट लिए १‍४३३ ई. महाराणा मोकल भी मेवाड़ी फौज के साथ चित्तौड़ से निकले महाराणा , केलवाड़ा में भयंकर युद्ध हुआ मेवाड़ी शेरो की संख्या ९-१० हज़ार के बीच थी और मलेचो की संख्या लाखों में हल्दीघाटी से भी बड़े बड़े २८ युद्ध हुए मेवाड़ और पठान , मुग़ल , अस्सीरिया , हुण के साथ जिसमे मुट्ठी भर मेवाड़ी सेना भाड़ी पड़े हैं, अहमदशाह के साथ युद्ध का निर्णय महाराणा मोकल की हार निश्चित थी क्यों की धूर्त मलेच्छो की आदत थी धूर्तता करना महाराणा मोकल निरन्तर युद्ध लड़ रहे थे मेवार की सेना सञ्चालन के लिए आर्थिक संकट से भी गुजर रहे थे इसलिए केलवाड़ा के युद्ध में तोपो का उपयोग करने में असमर्थ थे महाराणा , इन सभी बातो का फ़ायदा उठाते हुए अहमदशाह ने १६ तोप और १२,००० घुड़सवार सैनिक और १,०००,०० पैदल सैनिक के साथ आक्रमण कर दिया था मेवार पर, परंतु मेवार की धरती हमेसा शेर जनने हैं राणा मोकल के सेना में राव विक्रम सिंह के साथ उनके १२ वर्षीय पुत्र राव शेर सिंह भी थे जैसा नाम वैसा काम किया जिस तोप के सहारे मलेच्छ महाराणा मोकल को हरानेवाले थे उन तोपों के अस्लागड़ में रात के समय मशाल हाथ में लिए घुस गये और पूरा असलागड़ो को जला डाला और राव शेर की इस बलिदानी के साथ केलवाड़ा की युद्ध का निर्णय बदल गया अहमद शाह के सेना पर मुट्ठी भर मेवाड़ी रणबांकुरे भाड़ी पड़ गया , जैसे की इन मलेच्छो की आदात रेह चुकी हैं मृत्यु को सामने देख महाराणा मोकल के सामने घुटने टेक दिए , और क़ुरान की कसम खाते हुए की दोबारा मेवार की धरती पे आक्रमण नहीं करेगा , ना केवल मेवार छोड़ा अपितु गुजरात की पावनभूमि तक को छोड़ कर भाग गया था ।
परंतु जैसे की मलेच्छो की फितरत मोहम्मद घोड़ी की कहानी फिर दोहराया और मेवार पर रना कुम्भा जब गद्दी पर विराजमान हुआ मेवार की धरती पर अहमद शाह ने फिर आक्रमण किया पर तब फ़िर से हार का सामना किया अहमद शाह ने इस बारे में अगले भाग में बताएंगे ।
निर्माण कार्य - महाराणा मोकल ने चित्तौड़ में द्वारिकानाथ व समिद्धेश्वर मन्दिर बनवाया | कैलाशपुरी में एकलिंग जी के मन्दिर के चारों तरफ की कोट बनवाई | यहीं अपने छोटे भाई बाघसिंह के नाम पर बाघेला तालाब भी बनवाया | दान व भेंट - महाराणा मोकल ने पुष्कर तीर्थ पर स्वर्ण का तुलादान किया | महाराणा ने वांघनवाड़ा व रामा गाँव एकलिंग जी के भेंट किए | म्लेच्छ अहमदशाह को महाराणा मोकल से परास्त होना परा...
* महाराणा मोकल के 7 पुत्र हुए -
1) महाराणा कुम्भा
2) कुंवर क्षेमकरण - इन्हें सादड़ी की जागीर मिली
3) कुंवर शिवा
4) कुंवर सत्ता
5) कुंवर नाथसिंह
6) कुंवर वीरमदेव
7) कुंवर राजधर
* बाईसा लालबाई - ये महाराणा मोकल की पुत्री थीं | इनका विवाह गागरोन के खींची राव अचलसिंह से हुआ |
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जय एकलिंग
MANISHA SINGH

Thursday, 21 July 2016

‪‎तक्षक‬


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क्या आप उन कुछ बदकिस्मत लोगों में से हैं जिन्होंने यह बेहतरीन लेख नहीं पढा? क्या आपको चेक करना है कि आपके खुन में अब भी ऊबाल है या वह पानी बन चुका है?
तो थोड़ी लंबी है पर निवेदन है कि जरूर पढीये यह…
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प्राचीन भारत का पश्चिमोत्तर सीमांत!मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से एक चौथाई सदी बीत चुकी थी। तोड़े गए मन्दिरों, मठों और चैत्यों के ध्वंसावशेष अब टीले का रूप ले चुके थे, और उनमे उपजे वन में विषैले जीवोँ का आवास था। यहां के वायुमण्डल में अब भी कासिम की सेना का अत्याचार पसरा था और जैसे बलत्कृता कुमारियों और सरकटे युवाओं का चीत्कार गूंजता था।कासिम ने अपने अभियान में युवा आयु वाले एक भी व्यक्ति को जीवित नही छोड़ा था, अस्तु अब इस क्षेत्र में हिन्दू प्रजा अत्यल्प ही थी। संहार के भय से इस्लाम स्वीकार कर चुके कुछ निरीह परिवार यत्र तत्र दिखाई दे जाते थे, पर कहीं उल्लास का कोई चिन्ह नही था। कुल मिला कर यह एक शमशान था।
इस कथा का इस शमशान से मात्र इतना सम्बंध है, कि इसी शमशान में जन्मा एक बालक जो कासिम के अभियान के समय मात्र आठ वर्ष का था, वह इस कथा का मुख्य पात्र है। उसका नाम था तक्षक। मुल्तान विजय के बाद कासिम के सम्प्रदायोन्मत्त आतंकवादियों ने गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोची गयीं, और हजारों अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। अरब ने पहली बार भारत को अपना धर्म दिखया था, और भारत ने पहली बार मानवता की हत्या देखी थी।
तक्षक के पिता सिंधु नरेश दाहिर के सैनिक थे जो इसी कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति पा चुके थे। लूटती अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी।भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला। उसके बाद काटी जा रही गाय की तरह बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया। आठ वर्ष का बालक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भागा..............
पचीस वर्ष बीत गए। तब का अष्टवर्षीय तक्षक अब बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी, उसकी आँखे सदैव अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था।
कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम, विशाल सैन्यशक्ति और अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे, पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण बार बार वे मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।
आज महाराज की सभा लगी थी। कुछ ही समय पुर्व गुप्तचर ने सुचना दी थी, कि अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है, और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी।नागभट्ट का सबसे बड़ा गुण यह था, कि वे अपने सभी सेनानायकों का विचार लेकर ही कोई निर्णय करते थे। आज भी इस सभा में सभी सेनानायक अपना विचार रख रहे थे। अंत में तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला- महाराज, हमे इस बार वैरी को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।
- महाराज, अरब सैनिक महा बर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले- किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक।
तक्षक ने कहा- मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।
- पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर,
- राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह महाराज जानते हैं।
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।
अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।
आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए। इस भयावह निशा में तक्षक का सौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था। वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा- लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा- आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।
इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों में भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।
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साभार- ‪#‎Make_In_India‬

Thursday, 14 January 2016

गुड़ खाने से 18 फायदे

1>गुड़ खाने से नहीं होती गैस की दिक्कत
2>
खाना खाने के बाद अक्सर मीठा खाने का मन
करता हैं। इसके लिए सबसे बेहतर है कि आप गुड़
खाएं। गुड़ का सेवन करने से आप हेल्दी रह सकते
हैं
3> 
पाचन क्रिया को सही रखना
4> 
गुड़ शरीर का रक्त साफ करता है और
मेटाबॉल्जिम ठीक करता है। रोज एक गिलास पानी
या दूध के साथ गुड़ का सेवन पेट को ठंडक देता है।
इससे गैस की दिक्कत नहीं होती। जिन लोगों को
गैस की परेशानी हैवो रोज़ लंच या डिनर के बाद
थोड़ा गुड़ ज़रूर खाएं
5> 
गुड़ आयरन का मुख्य स्रोत है। इसलिए यह
एनीमिया के मरीज़ों के लिए बहुत फायदेमंद है।
खासतौर पर महिलाओं के लिए इसका सेवन बहुत
अधिक ज़रूर है
6> 
त्वचा के लिए -- गुड़ ब्लड से खराब टॉक्सिन
दूर करता हैजिससे त्वचा दमकती है और मुहांसे
की समस्या नहीं होती है।
7> 
गुड़ की तासीर गर्म हैइसलिए इसका सेवन
जुकाम और कफ से आराम दिलाता है। जुकाम के
दौरान अगर आप कच्चा गुड़ नहीं खाना चाहते हैं
तो चाय या लड्डू में भी इसका इस्तेमाल कर सकते
हैं।
8> 
एनर्जी के लिए -- बुहत ज़्यादा थकान और
कमजोरी महसूस करने पर गुड़ का सेवन करने से
आपका एनर्जी लेवल बढ़ जाता है। गुड़ जल्दी पच
जाता हैइससे शुगर का स्तर भी नहीं बढ़ता।
दिनभर काम करने के बाद जब भी आपको थकान
होतुरंत गुड़ खाएं।
9> 
गुड़ शरीर के टेंपरेचर को नियंत्रित रखता है।
इसमें एंटी एलर्जिक तत्व हैंइसलिए दमा के
मरीज़ों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता
है।
10> 
जोड़ों के दर्द में आराम -- रोज़ गुड़ के एक
टुकड़े के साथ अदरक का सेवन करेंइससे जोड़ों के
दर्द की दिक्कत नहीं होगी।
11> 
गुड़ के साथ पके चावल खाने से बैठा हुआ
गला  आवाज खुल जाती है।
12> 
गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में
अस्थमा की परेशानी नहीं होती है।
13> 
जुकाम जम गया होतो गुड़ पिघलाकर उसकी
पपड़ी बनाकर खिलाएं।
14> 
गुड़ और घी मिलाकर खाने से कान का दर्द
ठीक हो जाता है।
15> 
भोजन के बाद गुड़ खा लेने से पेट में गैस नहीं
बनती 
16> 
पांच ग्राम सौंठ दस ग्राम गुड़ के साथ लेने से
पीलिया रोग में लाभ होता है।
17> 
गुड़ का हलवा खाने से स्मरण शक्ति बढती
है।
18> 
पांच ग्राम गुड़ को इतने ही सरसों के तेल में
मिलाकर खाने से श्वास रोग से छुटकारा मिलता
है।