Monday, 14 December 2015

शिवाजी पुत्र- वीर शम्भा जी

वीर शम्भा जी का जन्म १४ मई १६५७ को हुआ था। आप वीर शिवाजी के साथ अल्पायु में औरंगजेब की कैद में आगरे के किले में बंद भी रहे थे। आपने ११मार्च१६८९ को वीरगति प्राप्त की थी। उस दिन फाल्गुन कि अमावस्या थी। अगले दिन हिन्दू नववर्ष का प्रथम दिन। अनेक दिनों तक निर्मम अत्याचार करने के बाद औरंगज़ेब ने इस दिन को इसलिए चुना ताकि अगले दिन हिंदुओं के यहाँ त्योहार के स्थान पर मातम का माहौल रहे। इससे पाठक औरंगज़ेब कि कुटिल मानसिकता को समझ सकते हैं। इस वर्ष फाल्गुन अमावस्या 30 मार्च को पड़ेगी। इस लेख के माध्यम से हम शम्भा जी के जीवन बलिदान की घटना से धर्म रक्षा की प्रेरणा ले सकते हैं। इतिहास में ऐसे उदहारण विरले ही मिलते हैं
औरंगजेब के जासूसों ने सुचना दी की शम्भा जी इस समय आपने पांच-दस सैनिकों के साथ वारद्वारी से रायगढ़ की ओर जा रहे हैं। बीजापुर और गोलकुंडा की विजय में औरंगजेब को शेख निजाम के नाम से एक सरदार भी मिला जिसे उसने मुकर्रब की उपाधि से नवाजा था। मुकर्रब अत्यंत क्रूर और मतान्ध था। शम्भा जी के विषय में सुचना मिलते ही उसकी बांछे खिल उठी। वह दौड़ पड़ा रायगढ़ की और शम्भा जी आपने मित्र कवि कलश के साथ इस समय संगमेश्वर पहुँच चुके थे। वह एक बाड़ी में बैठे थे की उन्होंने देखा कवि कलश भागे चले आ रहे हैं और उनके हाथ से रक्त बह रहा हैं, कलश ने शम्भा जी से कुछ भी नहीं कहाँ बल्कि उनका हाथ पकड़कर उन्हें खींचते हुए बाड़ी के तलघर में ले गए परन्तु उन्हें तलघर में घुसते हुए मुकर्रब खान के पुत्र ने देख लिया था। शीघ्र ही मराठा रणबांकुरों को बंदी बना लिया गया। शम्भा जी व कवि कलश को लोहे की जंजीरों में जकड़ कर मुकर्रब खान के सामने लाया गया। वह उन्हें देखकर खुशी से नाच उठा। दोनों वीरों को बोरों के समान हाथी पर लादकर मुस्लिम सेना बादशाह औरंगजेब की छावनी की और चल पड़ी थी।
औरंगजेब को जब यह समाचार मिला तो वह ख़ुशी से झूम उठा था। उसने चार मील की दूरी पर उन शाही कैदियों को रुकवाया था। वहां शम्भा जी और कवि कलश को रंग बिरंगे कपडे और विदूषकों जैसी घुंघरूदार लम्बी टोपी पहनाई गई थी। फिर उन्हें ऊंट पर बैठा कर गाजे बाजे के साथ औरंगजेब की छावनी पर लाया गया था। औरंगजेब ने बड़े ही अपशब्द शब्दों में उनका स्वागत किया था। शम्भा जी के नेत्रों से अग्नि निकल रही थी परन्तु वह शांत रहे थे। उन्हें बंदी ग्रह भेज दिया गया था। औरंगजेब ने शम्भा जी का वध करने से पहले उन्हें इस्लाम काबुल करने का न्योता देने के लिए रूह्ल्ला खान को भेजा था।
नर केसरी लोहे के सींखचों में बंद था। कल तक जो मराठों का सम्राट था आज उसकी दशा देखकर करुणा को भी दया आ जाये। फटे हुए चिथड़ों में लिप्त हुआ उनका शरीर मिटटी में पड़े हुए स्वर्ण के समान हो गया था। उन्हें स्वर्ग में खड़े हुए छत्रपति शिवाजी टकटकी बंधे हुए देख रहे थे। पिता जी पिता जी वे चिल्ला उठे- मैं आपका पुत्र हूँ, निश्चित रहिये,मैं मर जाऊँगा लेकिन…..
लेकिन क्या शम्भा जी …रूह्ल्ला खान ने एक और से प्रकट होते हुए कहाँ.
तुम मरने से बच सकते हो शम्भा जी परन्तु एक शर्त पर।
शम्भा जी ने उत्तर दिया में उन शर्तों को सुनना ही नहीं चाहता। शिवाजी का पुत्र मरने से कब डरता हैं।
लेकिन जिस प्रकार तुम्हारी मौत यहाँ होगी उसे देखकर तो खुद मौत भी थर्रा उठेगी शम्भा जी- रुहल्ला खान ने कहाँ।
कोई चिंता नहीं , उस जैसी मौत भी हम हिंदुओं को नहीं डरा सकती। संभव हैं की तुम जैसे कायर ही उससे डर जाते हो, शम्भा जी ने उत्तर दिया।
लेकिन… रुहल्ला खान बोला वह शर्त हैं बड़ी मामूली। तुझे बस इस्लाम कबूल करना हैं, तेरी जान बक्श दी जाएगी। शम्भा जी बोले बस रुहल्ला खान आगे एक भी शब्द मत निकालना मलेच्छ। रुहल्ला खान अट्टहास लगाते हुए वहाँ से चला गया।
उस रात लोहे की तपती हुई सलाखों से शम्भा जी की दोनों आँखे फोड़ दी गयी, उन्हें खाना और पानी भी देना बंद कर दिया गया।
आखिर ११ मार्च को वीर शम्भा जी के बलिदान का दिन आ गया। सबसे पहले शम्भा जी का एक हाथ काटा गया, फिर दूसरा, फिर एक पैर को काटा गया और फिर दूसरे पैर को काटा गया। शम्भा जी कर पाद विहीन धड़ दिन भर खून की तल्य्या में तैरता रहा था। फिर सायकाल में उनका सर कलम कर दिया गया और उनका शरीर कुत्तों के आगे डाल दिया गया था। फिर भाले पर उनके सर को टांगकर सेना के सामने उसे घुमाया गया और बाद में कूड़े में फेंक दिया गया था।
मरहठों ने अपनी छातियों पर पत्थर रखकर आपने सम्राट के सर का इंद्रायणी और भीमा के संगम पर तुलापुर में दांह संस्कार कर दिया गया। आज भी उस स्थान पर शम्भा जी की समाधी हैं जो की पुकार पुकार कर वीर शम्भा जी की याद दिलाती हैं की हम सर कटा सकते हैं पर अपना प्यारे वैदिक धर्म कभी नहीं छोड़ सकते।
इस लेख को पढ़कर शायद ही कोई हिन्दू होगा जिसका मस्तक शम्भा जी के बलिदान को सुनकर नतमस्तक न होगा। भारत भूमि महान हैं जहाँ पर एक से बढ़कर एक महान वीर जन्म लेते हैं।

Friday, 11 December 2015

गौमूत्र के 25 रोचक गुण- जो आप नहीं जानते


हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय के गोबर में लक्ष्मी और मूत्र में गंगा का वास होता है, जबकि आयुर्वेद में गौमूत्र के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का नियमित सेवन करने से कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से थोड़े से गौमूत्र का भी सेवन करते हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली कई बीमारियां दूर ही रहती हैं। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है। इसके कुछ गुण इस प्रकार गए हैं :-
1. गौ मूत्र कड़क, कसैला, तीक्ष्ण और ऊष्ण होने के साथ-साथ विष नाशक, जीवाणु नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति वर्द्धक और शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें नाइट्रोजन, ताम्र, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम, सल्फेट, फास्फेट, क्लोराइड और सोडियम की विभिन्न मात्राएं पायी जाती हैं। यह शरीर में ताम्र की कमी को पूरा करने में भी सहायक है।
2. गौमूत्र को न केवल रक्त के सभी तरह के विकारों को दूर करने वाला, कफ, वात व पित्त संबंधी तीनो दोषों का नाशक, हृदय रोगों व विष प्रभाव को खत्म करने वाला, बल-बुद्धि देने वाला बताया गया है, बल्कि यह आयु भी बढ़ाता है।
3. पेट की बीमारियों के लिए गौमूत्र रामवाण की तरह काम करता है, इसे चिकित्सीय सलाह के अनुसार नियमित पीने से यकृत यानि लिवर के बढ़ने की स्थिति में लाभ मिलता है। यह लिवर को सही कर खून को साफ करता है और रोग से लड़ने की क्षमता विकसित करता है।
4. 20 मिली गौमूत्र प्रात: सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है।
1. भूख की कमी, 2. अजीर्ण, 3. हर्निया, 4. मिर्गी, 5. चक्कर आना, 6. बवासीर, 7. प्रमेह, 8.मधुमेह, 9.कब्ज, 10. उदररोग, 11. गैस, 12. लूलगना, 13.पीलिया, 14. खुजली, 15.मुखरोग, 16.ब्लडप्रेशर, 17.कुष्ठ रोग, 18. जांडिस, 19. भगन्दर, 20. दन्तरोग, 21. नेत्र रोग, 22. धातु क्षीणता, 23. जुकाम, 24. बुखार, 25. त्वचा रोग, 26. घाव, 27. सिरदर्द, 28. दमा, 29. स्त्रीरोग, 30. स्तनरोग, 31.छिहीरिया, 32. अनिद्रा।
5. गौमूत्र को मेध्या और हृदया कहा गया है। इस तरह से यह दिमाग और हृदय को शक्ति प्रदान करता है। यह मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की रक्षा करता है और इन अंगों को प्रभावित करने वाले रोगों से बचाता है।
6. इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है |
7. कैंसर की चिकित्सा में रेडियो एक्टिव एलिमेन्ट प्रयोग में लाए जाते है | गौमूत्र में विद्यमान सोडियम,पोटेशियम,मैग्नेशियम,फास्फोरस,सल्फर आदि में से कुछ लवण विघटित होकर रेडियो एलिमेन्ट की तरह कार्य करने लगते है और कैंसर की अनियन्त्रित वृद्धि पर तुरन्त नियंत्रण करते है | कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते है | अर्क आँपरेशन के बाद बची कैंसर कोशिकाओं को भी नष्ट करता है | यानी गौमूत्र में कैसर बीमारी को दूर करने की शक्ति समाहित है |
8. दूध देने वाली गाय के मूत्र में “लेक्टोज” की मात्रा आधिक पाई जाती है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों के लिए उपयोगी होता है।
9. गाय के मूत्र में आयुर्वेद का खजाना है! इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता है जो कीटाणु नासक है, यह किटाणु जनित रोगों का भी नाश करता है। गौमूत्र चाहे जितने दिनों तक रखे, ख़राब नहीं होता है।
10. जोड़ों के दर्द में दर्द वाले स्थान पर गौमूत्र से सेकाई करने से आराम मिलता है। सर्दियों के मौषम में इस परेशानी में सोंठ के साथ गौ मूत्र पीना फायदेमंद बताया गया है।
11. गैस की शिकायत में प्रातःकाल आधे कप पानी में गौ मूत्र के साथ नमक और नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए।
12. चर्म रोग में गौ मूत्र और पीसे हुए जीरे के लेप से लाभ मिलता है। खाज, खुजली में गौ मूत्र उपयोगी है।
13. गौमूत्र मोटापा कम करने में भी सहायक है। एक ग्लास ताजे पानी में चार बूंद गौ मूत्र के साथ दो चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित पीने से लाभ मिलता है।
14. गौमूत्र का सेवन छानकर किया जाना चाहिए। यह वैसा रसायन है, जो वृद्धावस्था को रोकता है और शरीर को स्वस्थ्यकर बनाए रखता है।
15.गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा बढ़ा देता है| गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि|
16.अमेरिका में हुए एक अनुसंधान से सिध्द हो गया है कि गौ के पेट में "विटामिन बी" सदा ही रहता है। यह सतोगुणी रस है व विचारों में सात्विकता लाता है।
17.गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए| गौमूत्र सेवन के 1 घंटे पश्चात ही भोजन करना चाहिए|
18. गौमूत्र देशी गाय का ही सेवन करना सही रहता है। गाय का गर्भवती या रोग ग्रस्त नहीं होना चाहिए। एक वर्ष से बड़ी बछिया का गौ मूत्र बहुत लाभकारी होता है।
19. मांसाहारी व्यक्ति को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| गौमूत्र लेने के 15 दिन पहले मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए| पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर लेना चाहिए| पीलिया के रोगी को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| देर रात्रि में गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र में लेना चाहिए|
20. घर में गौमूत्र छिड़कने से लक्ष्मी कृपा मिलती है, जिस घर में प्रतिदिन गौमूत्र का छिड़काव किया जाता है, वहां देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है।
21.गौमूत्र में गंगा मईया वास करती हैं। गंगा को सभी पापों का हरण करने वाली माना गया है, अत: गौमूत्र पीने से पापों का नाश होता है।
22.जिस घर में नियमित रूप से गौमूत्र का छिड़काव होता है, वहां बहुत सारे वास्तु दोषों का समाधान एक साथ हो जाता हैं।
23. देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से ‘`प्रोपिलीन ऑक्साइड” उत्पन्न होती है, जो बारिस लाने में सहायक होती है| इसी के मिश्रण से ‘इथिलीन ऑक्साइड‘ गैस निकलती है जो ऑपरेशन थियटर में काम आता है |
24. गोमुत्र कीटनाशक के रूप में भी उपयोगी है। देसी गाय के एक लीटर गोमुत्र को आठ लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग किया जाता है । गोमुत्र के माध्यम से फसल को नैसर्गिक युरिया मिलता है। इस कारण खाद के रूप में भी यह छिड़काव उपयोगी होता है ।गौमूत्र से औषधियाँ एपं कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है।
25. अमेरिका ने गौ मूत्र पर 6 पेटेंट ले लिए हैं, और अमेरिकी सरकार हर साल भारत से गाय का मूत्र आयात करती है और उससे कैंसर की दवा बनाती हैं । उसको इसका महत्व समझ आने लगा है। जबकि हमारे शास्त्रो मे करोड़ो वर्षो पहले से इसका महत्व बताया गया है।
जय गौ माता -जय गौ पैथी

Thursday, 10 December 2015

National Herald Case : Explained by S.Gurumurthy

National Herald Case : Explained by S.Gurumurthy
"Recall the National Herald Fraud in brief & in details to know how greedy petty and how criminal are the Gandhis — Sonia & Rahul.
1. NH case facts: Financial crisis forced Associated Journals Limited [AJL] publishers of NH founded by Nehru, to close it down in 2008.
2. To pay off the employees to help the closure, the Congress Party had given interest free loan of Rs 90 crore plus to AJL, then.
3. With NH shut, AJL had become a mere real estate co in 2008, with properties in Delhi, Lucknow and Mumbai of over Rs 2000 crore.
4. Against RS 2000 cr properties, AJL owed just Rs 90 cr to Congress. It had very little liability, besides. A sitting duck for fraudsters
5. Rs 2000cr properties minus off Rs 90cr to Congress legally and morally belonged to AJL's thousand plus shareholders.
6. Big and small, N H Shareolders had contributed Rs 89 lakhs to AJL's capital, when the Rupee was hundred times more valuable.
7. If AJL's properties had been realised and distributed to shareholders, like hundreds of them would have got lacs of Rupees each
8. Brahm Dev Narain, teacher, holding just 41 shares in AJL, would have got some Rs 84000. Hundreds of others would have got similar sums
9. Now the greedy conspirators — Sonia, Rahul and others enter and grab the wealth of hundreds of others by fraud, cheating & breach of trust
10. But, defying both law & morals, Sonia &Rahul misappropriated control of AJL's 2000 cr assets without paying a dime to AJL's shareholders.
11. In just 3 months, Nov 2010 and Feb 2011 and in three moves, control of thousands of crore worth properties passed to the Gandhi family.
12. Here unfolds fraud. 1st step: in Nov 2010, a trust co named “Young Indian” was mysteriously formed with capital of just Rs 5 lakhs
13. Who owned Young Indian? - Sonia and Rahul 38 % each, totalling 76%, balance 24% held by two family retainers, Motilal Vohra and Oscar Fernandez.
14. 2nd step, very next month, December 2010, Gandhis got the Congress to assign its dues of 90 cr plus to Young Indian for just Rs 50 lacs
15. Congress wrote off balance Rs 89.75 cr. This creative – criminal – accounting substituted Young Indian for Congress
16. AJLs dues of Rs 90 cr to due congress became payable to Young Indian [YI] Now AJL has to pay Rs 90 cr to YI. See the fraud now
17. AJL converted the Rs 90 cr plus due to Young Indian into equity shares and allotted them. By this step, YI became 99 % owner of AJL
18. YI [Gandhis] became owner of 99% Rs 2000 cr real estate. Why should Congress write off Rs 89.75 cr due from YI which had 2000r assets
19. YI story stinks more. With Gandhis+proxies holding 100% of AJL, its directors are Sonia, Rahul and their lotas Vohra, Oscar, Dubey & Pitroda
20. What YI's objects? As per its report of 27th April 2012], it is “to inculcate in India's youth commitment to democratic and secularism”.
21. See what is the first act of this idealist company, after its birth in November 2010, to “inculcate” democracy & secularism in youth.
22. YI's first act in pursuance of its ideals was to take over the “loan of 90 cr owed” by AJL for just Rs 50 lakhs to become APL's 99% owner.
23. The 1st act of YI to promote idealism in Indian youth was to defraud the Congress party of 89.75 cr first
24. The next act of YI was to defraud the shareholders of AJL of couple of thousands crore on the other. See how the plot thickens.
25. Sonia Rahul plus their proxies use their voting power over AJL to change its activities” to align AJL's objects YI's “main objects”.
26. And “as part of the restructuring exercise of” AJL the “loan was converted into equity”. A joke! Pauper YI says it will restructure AJL!
27. YI is a pauper. From Nov 2010 to March 2012, YI's total income was just Rs.800 & its loss after deducting 800, was Rs 69.78 lac. A Bankrupt indeed
28. Does AJL, with 2000r real-estate need an asset-less and income-less pauper Young India for its restructure? See the deepening design.
29. YI's annual report intentionally conceals the crucial fact that the loan of Rs 90 cr plus owed by AJL to it was originally due to Congress
30. The intention was that looting of congress by YI should be concealed YI also suppresses that AJL with Rs 2000 cr asset is its subsidiary.
31. YI says that shareholders – who? Sonia, Rahul, Vohra, Oscar, Dubey and Pitroda! – will get information regarding the subsidiary on request!
32. This is a fraud as per company law, which mandates that the details of the subsidiary be available to the public. More.
33. YI also totally suppresses its 99 percent holdings in AJL treating the amount paid for it as expenditure for its objects, not investment.
34. An investment whose value is Rs 2000 cr is written off in books as merely an expenditure? Mother of all frauds to cancel YI's 2000 cr assets
35. By fraudulent accounting payment of Rs 50 lacs for 99 percent of shares of AJL worth 2000 cr is shown, not as an asset, but as spend! Why?
36. Obvious. To keep the 2000 cr defrauded asset out of the balance sheet of YI! See more fraud
37. YI blatantly lies that the net worth of AJL is negative [whereas it is plus 1900cr], YIs 99% holdings in AJL is written off!
38. Truth is AJL had positive net worth [on 31.3.2011] of Rs 8 crore; of which Young Indian's 99 percent share is Rs 7.92 cr.
39. So the negative net worth story about AJL is a fabrication. The real net worth of Young Indian is of course 2000 cr plus minus
40. The final lie. After Swamy's expose, the Congress, with tears in its eyes said on Nov 3, '12, that NH revival was was an “emotional issue”
41. Congress had paid 90r in 2008 to help close, not revive, the Herald. It cries in 2012 that it paid that to revive NH!
42. And 3 weeks before Congress shed tears to revive NH, on Oct 11, 2012, Rahul emphatically told Pioneer YI had no intention to run a paper.
43. Rahul's office email told Pioneer “Young Indian is a not-for-profit company and does not have commercial operations — namely newspapers.
44. Rahul email also said YI had no intention to run newspapers. Any proof needed for the fake sobbing story of NH revival? A post facto lie?
45. The Gandhi family usurping the AJL's Rs 2000 cr real estate, with the funds of the Congress and through Young India, is fraud all the way.
46. It is a fraud on the Congress. on the shareholders of AJL. And on the National Herald.
47. Pundit Nehru once said "I will not let the National Herald close down even if I have to sell [my own house] Anand Bhawan".
48. And now? The greedy and fraudulent Gandhis have buried the National Herald and looted its real estate. Fake Gandhis are not even dynastic
49. National Herald fraud by the two Gandhis and their proxies is an open and shut case. It just needs one honest judge to send them to jail.
50. I recollected the whole fraud since several million more readers and people have come into the scene since 2012. For their knowledge."

gaddar-मोहम्मद सिराजुद्दीन

यह पढ़ा लिखा मुसलमान : मोहम्मद सिराजुद्दीन निवासी बी-605 जवाहर एनक्लेव, जवाहर नगर, जयपुर की गतिविधियां संदिग्ध होने की गुप्त सूचना प्राप्त होने पर उसका सत्यापन किया गया। वह मूलत: गुलबर्गा कर्नाटक का रहने वाला है। उन्होंने बताया कि इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन IOC जयपुर में मार्केटिंग मैनेजर मोहम्मद सिराजुद्दीन प्रतिबन्धित आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट आफ इराक एण्ड सीरिया पर सक्रिय सदस्य होने, मुस्लिम युवाओं को इस्लामिक स्टेट के लिए कार्य करने के लिए उकसाने की पुख्ता जानकारी प्राप्त होने पर एटीएस के अधिकारियों द्वारा जांच की। मोहम्मद सिराजुद्दीन के वाट्सअप्प, फेसबुक, टेलीग्राम आदि पर आपतिजनक एवं आतंकी संगठन के प्रचार-प्रसार के संबंध में लिप्त होना पाया गया। राजस्थान एटीएस ATS पुलिस ने आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया (आईएसआईएस ISIS) के लिए कार्य करने, इंटरनेट पर इसका प्रचार-प्रसार करने, लोगों को इसके सदस्य बनने के प्रेरित करने एवं अन्य राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप में मोहम्मद सिराजुद्दीन नामक व्यक्ति को गुरुवार को गिरफ्तार किया गया है।
संदिग्ध मोहम्मद सिराजुद्दीन से पूछताछ एवं डाटा विश्लेषण से आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया द्वारा इंटरनेट का प्रयोग कर मुस्लिम युवकों, युवतियों को आईएसआईएस में भर्ती करने के आपराधिक दुष्प्रेरण का खुलासा हुआ है। मोहम्मद सिराजुद्दीन द्वारा वाट्सअप, फेसबुक, टेलीग्राम पर कई समूह बनाये गए जिनमें आईएसआईएस की आतंकी एवं जेहादी विचारधारा का प्रचार प्रसार किया गया है। अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस ने बताया कि व्यक्तियों को इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिये प्रेरित करने वाले आपतिजनक मैसेज, फोटो व वीडियों बडी मात्रा में पोस्ट किये। सिराजुद्दीन के आईएसआईएस की ऑन लाइन मासिक पत्रिका ‘दाबिक’ के कई अंक भी प्राप्त किए। मोहम्मद सिराजुद्दीन के इस्लामिक स्टेट के अन्य भारतीय एवं विदेशी सदस्यों से सम्पर्कों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा रही है। सिराजुद्दीन ने प्रतिबन्धित आतंकी संगठन आईएसआईएस से ऑनलाइन जुडकर इसकी गतिविधियों को ऑनलाइन प्रचारित, प्रसारित कर आतंकी संगठन के कार्य को बढावा देकर अन्य लोगों को इससे विचारधारा से प्रेरित कर सदस्य बनाने प्रचार प्रसार किया। डा. त्रिपाठी ने बताया कि एटीएस द्वारा पुलिस थाना एसओजी, राजस्थान, जयपुर में विधि विरूद्घ क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 के अन्तर्गत अभियोग दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार करके जांच की जा रही है।
कुछ दिन पहले भी सामने आया था की ISIS में १०० से अधिक स्थानिक लोक जुड़े है। और तो और सेना में भी मुसलमान जासूस घुस चुके है। प. बंगाल + कर्नाटक + केरला + राजस्थान + UP + गुजरात + बिहार + काश्मीर इतने सारे प्रमाण सामने है और बुद्धि जीवे कहते है की आतंकी का कई धर्म नहीं होता ! में उन सारे बुद्धि जीवियों से पूछना चाहता हूँ इन सरे गद्दारों किस धर्म के पुजारी है ? उस धर्म का नाम बताइये।
अब कई पड़ोस में रहने वाले पढ़े लिखे मुसलमान को भी संदेह की नजर से देखेंगी। अब इतने सारे प्रमाण प्रत्यक्ष हो तब भरोसा करना असंभव है। ऐसे अत्याचारी लुटेरों को जो लोग अपना हीरो + नायक + आदर्श मानते है वो हम हिन्दु ओं को भी भीतर से दुश्मन/ काफ़िर मानते है। वो लोग हिन्दुस्थान के लिए ख़तरा है। जो टीवी डिबेट में खुले आम कहते है की मुहम्मद बिन क़ासिम + औरंगज़ेब हमारे हीरों है वो हिन्दुस्थान के दुश्मन है। उन दुश्मनो से हमें सावधान रहना चाहिए। वो गद्दार कभी भी हमारी पीठ में छुरा घोंप सकते है ISIS को गुप्त रीत से सहयोग भी कर सकते है।
राष्ट्रपति + उप राष्ट्रपति + प्रधानमंत्री + उप प्रधानमंत्री + उंच न्यायधीश + चौथा स्तंभ अपनी आँखे खोलो। देश ISIS के चंगुलमे फसता जा रहा है।
देश के राष्ट्रवादी नागरिक भी जागरूक बने और अन्यको सतर्क रहने के लिए सचेत करे।
वंदे मातरम्.....

सोनिया मायनों ने कितने लोगो को मरवाया : :

सोनिया मायनों ने कितने लोगो को मरवाया : :
राजीव गांधी: बोफोर्स के पैसे खाने के लिए राजीव को मरवाया.>खुद बच निकली.
संजय गांधी: को मरवाया क्योंकि वो हिंदुस्तान के नए निर्माण के लिए काम करने लगा था. और उसने मुस्लिम्स को कण्ट्रोल करना सुरु क्या था.
माधवराव सिन्दया: को मरवाया क्योंकि वो इसका बहुत पुराना ( शादी से पहले का BOY FRIEND ) था . ये बात रोबर्ट वाड्रा कि माँ जानती थी.इस लिए सोन्या ने प्रयंका की शादी रोबर्ट वाड्रा से कि क्योंकि रोबर्ट कि माँ इस के साथ Italy में उसी बार में काकाम करती थी जहा ये सोन्या बार girl थी और ये धंधे करती थी Escort थिस एक पाकिस्तानी के लिए Girls सप्लाई का कम करती थी.रोबर्ट वाड्रा कि माँ ने इसकी पोल खोलने कि धमकी देकर पहले तो रोबर्ट कि शादी प्रियंका से करवा ली फिर पैसे के लिए ब्लैकमेल करने लगी तो इसने रोबर्ट कि माँ और उसके २ और रिस्तेदारो को मरवा दिया.
बोफोर्स घोटालो से अपने को बचा लेने वाली ये खुनी अब नए घोटालो से बचने के लिए चुनाव के तुरंत बाद ( हार के बाद) मनमोहन तथा कुछ दूसरे लोगो को मरवाने का प्लान कर चुकी है)
ये इतालियन रांड दुनिया कि चौथी धनि महिला कैसे बन गयी: इसने हिंदुस्तान कि खरबो कि सम्पति इटली अपनी बेहनो को भेजी वह ये रिचेस्ट बन गए.. इसका परिवार ( जो इसका तथाकथित परिवार है) इटली के धनि परिवार में है. तो इसने खरबो के घोटाले करके स्विस बैंक में डाल रखे है..और रहिंदुस्तनी बेवकूफ इस रांड कि करतूत को जन के भी बेवकूफ कि तरह इसे नाजायज़ माँ बनाने पे तुले हुवे है.>शर्म करो हिन्दुस शर्म करो हिंदुस्तानिओं..
इस दुर्भाग्य का अंत करना जरुरी है..मुसलमानो और अंग्रेजो से ज्यादा इस अकेली इतालियन रैंड ने लूट लिए..खरबो कि फिजिकल सम्पति इसने अपनी बहनो को इटली भेजी है जो किसी को मालूम ही नहीं..इसका परिवार इटली में एक अति आमिर खंडन है आज कि तारीख में..इस कि एक बहिन नेपाल के रजा के भाई कि रखेल थी.
ये इतालियन रांड सिर्फ ५ क्लास पढ़ी हुई है..और मनमोहन जैसे Phd इसके कुत्ते (पालतू ) बने हुवे है.>शर्म करो वोटर्स..शर्म करो हिंदुस्तानी लोगो..इस बिदेशी रांड ने तो मुस्लिम्स और अंग्रेजो से ज्यादा लूटा और बेवकूफ बनाया है हमे..अब तो जागो. Wake up HINDUS

Wednesday, 9 December 2015

चूना का चमत्कार – भाई राजीव दीक्षित जी

चूना का चमत्कार – भाई राजीव दीक्षित जी
// पत्थर के रोगी को चुना नहीं खाना है//
चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर देता है !!!!
जैसे किसीको पीलिया हो जाये माने जोंडिस उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना; गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है । और यही चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है – अगर किसीके शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे; और जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दवा है ये चूना । विद्यार्थीओ के लिए
चूना बहुत अच्छी है जो लम्बाई बढाती है – गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिलाके खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिलाके खाओ, दाल नही है तो पानी में मिलाके पियो – इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है । जिन बच्चोकी बुद्धि कम काम करती है मतिमंद बच्चे उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना, जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से ठीक हो जायेंगे ।
बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है चूना । और हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना; गेहूँ के दाने के बराबर चूना हरदिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना ।
जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए क्योकि गर्भवती माँ को सबसे जादा काल्सियम की जरुरत होती है और चूना कैल्सियम का सब्से बड़ा भंडार है । गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में – अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे – पहला फायदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नोर्मल डेलीभरी होगा, दूसरा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हिस्टपुष्ट और तंदरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होसियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।
चूना घुटने का दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है । कई बार हमारे रीड़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बड़ जाती है Gap आ जाता है – ये चूना ही ठीक करता है उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चुने से ठीक होता है । अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे जादा चुने में है । चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।
अगर मुह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है , मुह में अगर छाले हो गए है तो चुने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है । शारीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए , अनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना , चूना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में – अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है – एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ।
भारत के जो लोग चुने से पान खाते है, बहुत होसियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चूना अमृत है .. तो चूना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चुने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था कन्सर करता है, पान में सुपारी मत डालिए सोंट डालिए उसमे , इलाइची डालिए , लोंग डालिए. केशर डालिए ; ये सब डालिए पान में चूना लगाके पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।
अगर आपके घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये और हाड़सिंगार के पत्ते का काड़ा खाइए घुटने बहुत अछे काम करेंगे । राजीव भाई कहते है चूना खाइए पर चूना लगाइए मत किसको भी ..ये चूना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है ; आजकल हमारे देश में चूना लगाने वाले बहुत है पर ये भगवान ने खाने के लिए दिया है ।

भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूर्वज मुसलमान कैसे बने?

भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूर्वज मुसलमान कैसे बने?
इस तथ्य को सभी स्वीकार करते हैं कि लगभग 99 प्रतिशत भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे। वह स्वधर्म को छोड़ कर कैसे मुसलमान हो गये?अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि उनको तलवार की नोक पर मुसलमान बनाया गया अर्थात् वे स्वेच्छा से मुसलमान नहीं बने। मुसलमान इसका प्रतिवाद करते हैं। उनका कहना है कि इस्लाम का तो अर्थ ही शांति का धर्म है। बलात धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं है। यदि किसी ने ऐसा किया अथवा करता है तो यह इस्लाम की आत्मा के विरुद्ध निंदनीय कृत्य है। अधिकांश हिन्दू मुसलमान इस कारण बने कि उन्हें अपने दम घुटाऊ धर्म की तुलना में समानता का सन्देश देने वाला इस्लाम उत्तम लगा।
इस लेख में हम इस्लमिक आक्रान्ताओं के अत्याचारों को सप्रमाण देकर यह सिद्ध करेंगे की भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे एवं उनके पूर्वजों पर इस्लामिक आक्रान्ताओं ने अनेक अत्याचार कर उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया था। अनेक मुसलमान भाइयों का यह कहना हैं कि भारतीय इतिहास मूलत: अंग्रेजों द्वारा रचित हैं। इसलिए निष्पक्ष नहीं है। यह असत्य है। क्यूंकि अधिकांश मुस्लिम इतिहासकार आक्रमणकारियों अथवा सुल्तानों के वेतन भोगी थे। उन्होंने अपने आका की अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखना एवं बुराइयों को छुपाकर उन्होंने अपनी स्वामी भक्ति का भरपूर परिचय दिया हैं। तथापि इस शंका के निवारण के लिए हम अधिकाधिक मुस्लिम इतिहासकारों के आधार पर रचित अंग्रेज लेखक ईलियट एंड डाउसन द्वारा संगृहीत एवं प्रामाणिक समझी जाने वाली पुस्तकों का इस लेख में प्रयोग करेंगे।
भारत पर 7वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन क़ासिम से लेकर 18वीं शताब्दी में अहमद शाह अब्दाली तक करीब 1200 वर्षों में अनेक आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं पर अनगिनत अत्याचार किये। धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक रूप से असंगठित होते हुए भी हिन्दू समाज ने मतान्ध अत्याचारियों का भरपूर प्रतिकार किया। सिंध के राजा दाहिर और उनके बलिदानी परिवार से लेकर वीर मराठा पानीपत के मैदान तक अब्दाली से टकराते रहे। आक्रमणकारियों का मार्ग कभी भी निष्कंटक नहीं रहा अन्यथा सम्पूर्ण भारत कभी का दारुल इस्लाम (इस्लामिक भूमि) बन गया होता। आरम्भ के आक्रमणकारी यहाँ आते, मारकाट -लूटपाट करते और वापिस चले जाते। बाद की शताब्दियों में उन्होंने न केवल भारत को अपना घर बना लिया अपितु राजसत्ता भी ग्रहण कर ली। इस लेख में हम कुछ आक्रमणकारियों जैसे मौहम्मद बिन कासिम,महमूद गजनवी, मौहम्मद गौरी और तैमूर के अत्याचारों की चर्चा करेंगे।
मौहम्मद बिन कासिम
भारत पर आक्रमण कर सिंध प्रान्त में अधिकार प्रथम बार मुहम्मद बिन कासिम को मिला था।उसके अत्याचारों से सिंध की धरती लहूलुहान हो उठी थी। कासिम से उसके अत्याचारों का बदला राजा दाहिर की दोनों पुत्रियों ने कूटनीति से लिया था।
1. प्रारंभिक विजय के पश्चात कासिम ने ईराक के गवर्नर हज्जाज को अपने पत्र में लिखा-'दाहिर का भतीजा, उसके योद्धा और मुख्य मुख्य अधिकारी कत्ल कर दिये गये हैं। हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया है, अन्यथा कत्ल कर दिया गया है। मूर्ति-मंदिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं। अजान दी जाती है। [i]
2. वहीँ मुस्लिम इतिहासकार आगे लिखता है- 'मौहम्मद बिन कासिम ने रिवाड़ी का दुर्ग विजय कर लिया। वह वहाँ दो-तीन दिन ठहरा। दुर्ग में मौजूद 6000 हिन्दू योद्धा वध कर दिये गये, उनकी पत्नियाँ, बच्चे, नौकर-चाकर सब कैद कर लिये (दास बना लिये गये)। यह संख्या लगभग 30 हजार थी। इनमें दाहिर की भानजी समेत 30 अधिकारियों की पुत्रियाँ भी थी[ii]।
महमूद गजनवी
मुहम्मद गजनी का नाम भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान को युद्ध में हराने और बंदी बनाकर अफगानिस्तान लेकर जाने के लिए प्रसिद्द है। गजनी मजहबी उन्माद एवं मतान्धता का जीता जागता प्रतीक था।
1. भारत पर आक्रमण प्रारंभ करने से पहले इस 20 वर्षीय सुल्तान ने यह धार्मिक शपथ ली कि वह प्रति वर्ष भारत पर आक्रमण करता रहेगा, जब तक कि वह देश मूर्ति और बहुदेवता पूजा से मुक्त होकर इस्लाम स्वीकार न कर ले। अल उतबी इस सुल्तान की भारत विजय के विषय में लिखता है-'अपने सैनिकों को शस्त्रास्त्र बाँट कर अल्लाह से मार्ग दर्शन और शक्ति की आस लगाये सुल्तान ने भारत की ओर प्रस्थान किया। पुरुषपुर (पेशावर) पहुँचकर उसने उस नगर के बाहर अपने डेरे गाड़ दिये[iii]।
2. मुसलमानों को अल्लाह के शत्रु काफिरों से बदला लेते दोपहर हो गयी। इसमें 15000 काफिर मारे गये और पृथ्वी पर दरी की भाँति बिछ गये जहाँ वह जंगली पशुओं और पक्षियों का भोजन बन गये। जयपाल के गले से जो हार मिला उसका मूल्य 2 लाख दीनार था। उसके दूसरे रिद्गतेदारों और युद्ध में मारे गये लोगों की तलाशी से 4 लाख दीनार का धन मिला। इसके अतिरिक्त अल्लाह ने अपने मित्रों को 5 लाख सुन्दर गुलाम स्त्रियाँ और पुरुष भी बखशो[iv]।
3. कहा जाता है कि पेशावर के पास वाये-हिन्द पर आक्रमण के समय महमूद ने महाराज जयपाल और उसके 15 मुख्य सरदारों और रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया था। सुखपाल की भाँति इनमें से कुछ मृत्यु के भय से मुसलमान हो गये। भेरा में, सिवाय उनके, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया, सभी निवासी कत्ल कर दिये गये। स्पष्ट है कि इस प्रकार धर्म परिवर्तन करने वालों की संखया काफी रही होगी[v]।
4. मुल्तान में बड़ी संख्या में लोग मुसलमान हो गये। जब महमूद ने नवासा शाह पर (सुखपाल का धर्मान्तरण के बाद का नाम) आक्रमण किया तो उतवी के अनुसार महमूद द्वारा धर्मान्तरण का अभूतपूर्व प्रदर्शन हुआ[vi]। काश्मीर घाटी में भी बहुत से काफिरों को मुसलमान बनाया गया और उस देश में इस्लाम फैलाकर वह गजनी लौट गया[vii]।
5. उतबी के अनुसार जहाँ भी महमूद जाता था, वहीं वह निवासियों को इस्लाम स्वीकार करने पर मजबूर करता था। इस बलात् धर्म परिवर्तन अथवा मृत्यु का चारों ओर इतना आतंक व्याप्त हो गया था कि अनेक शासक बिना युद्ध किये ही उसके आने का समाचार सुनकर भाग खड़े होते थे। भीमपाल द्वारा चाँद राय को भागने की सलाह देने का यही कारण था कि कहीं राय महमूद के हाथ पड़कर बलात् मुसलमान न बना लिया जाये जैसा कि भीमपाल के चाचा और दूसरे रिश्तेदारों के साथ हुआ था[viii]।
6. 1023 ई. में किरात, नूर, लौहकोट और लाहौर पर हुए चौदहवें आक्रमण के समय किरात के शासक ने इस्लाम स्वीकार कर लिया और उसकी देखा-देखी दूसरे बहुत से लोग मुसलमान हो गये। निजामुद्दीन के अनुसार देश के इस भाग में इस्लाम शांतिपूर्वक भी फैल रहा था, और बलपूर्वक भी`[ix]। सुल्तान महमूद कुरान का विद्वान था और उसकी उत्तम परिभाषा कर लेता था। इसलिये यह कहना कि उसका कोई कार्य इस्लाम विरुद्ध था, झूठा है।
7. हिन्दुओं ने इस पराजय को राष्ट्रीय चुनौती के रूप में लिया। अगले आक्रमण के समय जयपाल के पुत्र आनंद पाल ने उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, दिल्ली और अजमेर के राजाओं की सहायता से एक बड़ी सेना लेकर महमूद का सामना किया। फरिश्ता लिखता है कि 30,000 खोकर राजपूतों ने जो नंगे पैरों और नंगे सिर लड़ते थे, सुल्तान की सेना में घुस कर थोड़े से समय में ही तीन-चार हजार मुसलमानों को काट कर रख दिया। सुल्तान युद्ध बंद कर वापिस जाने की सोच ही रहा था कि आनंद पाल का हाथी अपने ऊपर नेपथा के अग्नि गोले के गिरने से भाग खड़ा हुआ। हिन्दू सेना भी उसके पीछे भाग खड़ी हुई[x]।
8. सराय (नारदीन) का विध्वंस- सुल्तान ने (कुछ समय ठहरकर) फिर हिन्द पर आक्रमण करने का इरादा किया। अपनी घुड़सवार सेना को लेकर वह हिन्द के मध्य तक पहुँच गया। वहाँ उसने ऐसे-ऐसे शासकों को पराजित किया जिन्होंने आज तक किसी अन्य व्यक्ति के आदेशों का पालन करना नहीं सीखा था। सुल्तान ने उनकी मूर्तियाँ तोड़ डाली और उन दुष्टों को तलवार के घाट उतार दिया। उसने इन शासकों के नेता से युद्ध कर उन्हें पराजित किया। अल्लाह के मित्रों ने प्रत्येक पहाड़ी और वादी को काफिरों के खून से रंग दिया और अल्लाह ने उनको घोड़े, हाथियों और बड़ी भारी संपत्ति मिली[xi]।
9. नंदना की विजय के पश्चात् सुल्तान लूट का भारी सामान ढ़ोती अपनी सेना के पीछे-पीछे चलता हुआ, वापिस लौटा। गुलाम तो इतने थे कि गजनी की गुलाम-मंडी में उनके भाव बहुत गिर गये। अपने (भारत) देश में अति प्रतिष्ठा प्राप्त लोग साधारण दुकानदारों के गुलाम होकर पतित हो गये। किन्तु यह तो अल्लाह की महानता है कि जो अपने महजब को प्रतिष्ठित करता है और मूति-पूजा को अपमानित करता है[xii]।
10. थानेसर में कत्ले आम- थानेसर का शासक मूर्ति-पूजा में घोर विश्वास करता था और अल्लाह (इस्लाम) को स्वीकार करने को किसी प्रकार भी तैयार नहीं था। सुल्तान ने (उसके राज्य से) मूर्ति पूजा को समाप्त करने के लिये अपने बहादुर सैनिकों के साथ कूच किया। काफिरों के खून से, नदी लाल हो गई और उसका पानी पीने योग्य नहीं रहा। यदि सूर्य न डूब गया होता तो और अधिक शत्रु मारे जाते। अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने इस्लाम को सदैव-सदैव के लिये सभी दूसरे मत-मतान्तरों से श्रेष्ठ स्थापित किया है, भले ही मूर्ति पूजक उसके विरुद्ध कितना ही विद्रोह क्यों न करें। सुल्तान, इतना लूट का माल लेकर लौटा जिसका कि हिसाब लगाना असंभव है। स्तुति अल्लाह की जो सारे जगत का रक्षक है कि वह इस्लाम और मुसलमानों को इतना सम्मान बख्शता है[xiii]।
11. अस्नी पर आक्रमण- जब चन्देल को सुल्तान के आक्रमण का समाचार मिला तो डर के मारे उसके प्राण सूख गये। उसके सामने साक्षात मृत्यु मुँह बाये खड़ी थी। सिवाय भागने के उसके पास दूसरा विकल्प नहीं था। सुल्तान ने आदेश दिया कि उसके पाँच दुर्गों की बुनियाद तक खोद डाली जाये। वहाँ के निवासियों को उनके मल्बे में दबा दिया अथवा गुलाम बना लिया गया।चन्देल के भाग जाने के कारण सुल्तान ने निराश होकर अपनी सेना को चान्द राय पर आक्रमण करने का आदेश दिया जो हिन्द के महान शासकों में से एक है और सरसावा दुर्ग में निवास करता है[xiv]।
12. सरसावा (सहारनपुर) में भयानक रक्तपात- सुल्तान ने अपने अत्यंत धार्मिक सैनिकों को इकट्ठा किया और द्गात्रु पर तुरन्त आक्रमण करने के आदेश दिये। फलस्वरूप बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये अथवा बंदी बना लिये गये। मुसलमानों ने लूट की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जब तक कि कत्ल करते-करते उनका मन नहीं भर गया। उसके बाद ही उन्होंने मुर्दों की तलाशी लेनी प्रारंभ की जो तीन दिन तक चली। लूट में सोना, चाँदी, माणिक, सच्चे मोती, जो हाथ आये जिनका मूल्य लगभग तीस लाख दिरहम रहा होगा। गुलामों की संखया का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक को 2 से लेकर 10 दिरहम तक में बेचा गया। द्गोष को गजनी ले जाया गया। दूर-दूर के देशों से व्यापारी उनको खरीदने आये। मवाराउन-नहर ईराक, खुरासान आदि मुस्लिम देश इन गुलामों से पट गये। गोरे, काले, अमीर, गरीब दासता की समान जंजीरों में बँधकर एक हो गये[xv]।
13. सोमनाथ का पतन- अल-काजवीनी के अनुसार 'जब महमूद सोमनाथ के विध्वंस के इरादे से भारत गया तो उसका विचार यही था कि (इतने बड़े उपसाय देवता के टूटने पर) हिन्दू (मूर्ति पूजा के विश्वास को त्यागकर) मुसलमान हो जायेंगे[xvi]।दिसम्बर 1025 में सोमनाथ का पतना हुआ। हिन्दुओं ने महमूद से कहा कि वह जितना धन लेना चाहे ले ले, परन्तु मूर्ति को न तोड़े। महमूद ने कहा कि वह इतिहास में मूर्ति-भंजक के नाम से विखयात होना चाहता है, मूर्ति व्यापारी के नाम से नहीं। महमूद का यह ऐतिहासिक उत्तर ही यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है कि सोमनाथ के मंदिर को विध्वंस करने का उद्देश्य धार्मिक था, लोभ नहीं।मूर्ति तोड़ दी गई। दो करोड़ दिरहम की लूट हाथ लगी, पचास हजार हिन्दू कत्ल कर दिये गये[xvii]। लूट में मिले हीरे, जवाहरातों, सच्चे मोतियों की, जिनमें कुछ अनार के बराबर थे, गजनी में प्रदर्शनी लगाई गई जिसको देखकर वहाँ के नागरिकों और दूसरे देशों के राजदूतों की आँखें फैल गई[xviii]।
मौहम्मद गौरी
मुहम्मद गौरी नाम नाम गुजरात के सोमनाथ के भव्य मंदिर के विध्वंश के कारण सबसे अधिक कुख्यात है। गौरी ने इस्लामिक जोश के चलते लाखों हिन्दुओं के लहू से अपनी तलवार को रंगा था।
1. मुस्लिम सेना ने पूर्ण विजय प्राप्त की। एक लाख नीच हिन्दू नरक सिधार गये (कत्ल कर दिये गये)। इस विजय के पश्चात् इस्लामी सेना अजमेर की ओर बढ़ी-वहाँ इतना लूट का माल मिला कि लगता था कि पहाड़ों और समुद्रों ने अपने गुप्त खजानें खोल दिये हों। सुल्तान जब अजमेर में ठहरा तो उसने वहाँ के मूर्ति-मंदिरों की बुनियादों तक को खुदावा डाला और उनके स्थान पर मस्जिदें और मदरसें बना दिये, जहाँ इस्लाम और शरियत की शिक्षा दी जा सके[xix]।
2. फरिश्ता के अनुसार मौहम्मद गौरी द्वारा 4 लाख 'खोकर' और 'तिराहिया' हिन्दुओं को इस्लाम ग्रहण कराया गया[xx]।
3. इब्ल-अल-असीर के द्वारा बनारस के हिन्दुओं का भयानक कत्ले आम हुआ। बच्चों और स्त्रियों को छोड़कर और कोई नहीं बक्शा गया[xxi]।स्पष्ट है कि सब स्त्री और बच्चे गुलाम और मुसलमान बना लिये गये।
तैमूर लंग
तैमूर लंग अपने समय का सबसे अत्याचारी हमलावर था। उसके कारण गांव के गांव लाशों के ढेर में तब्दील हो गए थे।लाशों को जलाने वाला तक बचा नहीं था।
1. 1399 ई. में तैमूर का भारत पर भयानक आक्रमण हुआ। अपनी जीवनी 'तुजुके तैमुरी' में वह कुरान की इस आयत से ही प्रारंभ करता है 'ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सखती बरतो।' वह आगे भारत पर अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है। 'हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना है (जिससे) इस्लाम की सेना को भी हिन्दुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें[xxii]।
2. कश्मीर की सीमा पर कटोर नामी दुर्ग पर आक्रमण हुआ। उसने तमाम पुरुषों को कत्ल और स्त्रियों और बच्चों को कैद करने का आदेश दिया। फिर उन हठी काफिरों के सिरों के मीनार खड़े करने के आदेश दिये। फिर भटनेर के दुर्ग पर घेरा डाला गया। वहाँ के राजपूतों ने कुछ युद्ध के बाद हार मान ली और उन्हें क्षमादान दे दिया गया। किन्तु उनके असवाधान होते ही उन पर आक्रमण कर दिया गया। तैमूर अपनी जीवनी में लिखता है कि 'थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के घाट उतार दिये गये। घंटे भर में दस हजार लोगों के सिर काटे गये। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। उनके सरोसामान, खजाने और अनाज को भी, जो वर्षों से दुर्ग में इकट्ठा किया गया था, मेरे सिपाहियों ने लूट लिया। मकानों में आग लगा कर राख कर दिया। इमारतों और दुर्ग को भूमिसात कर दिया गया[xxiii]।
3. दूसरा नगर सरसुती था जिस पर आक्रमण हुआ। 'सभी काफिर हिन्दू कत्ल कर दिये गये। उनके स्त्री और बच्चे और संपत्ति हमारी हो गई। तैमूर ने जब जाटों के प्रदेश में प्रवेश किया। उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि 'जो भी मिल जाये, कत्ल कर दिया जाये।' और फिर सेना के सामने जो भी ग्राम या नगर आया, उसे लूटा गया।पुरुषों को कत्ल कर दिया गया और कुछ लोगों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया[xxiv]।'
4. दिल्ली के पास लोनी हिन्दू नगर था। किन्तु कुछ मुसलमान भी बंदियों में थे। तैमूर ने आदेश दिया कि मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी हिन्दू बंदी इस्लाम की तलवार के घाट उतार दिये जायें। इस समय तक उसके पास हिन्दू बंदियों की संखया एक लाख हो गयी थी। जब यमुना पार कर दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी हो रही थी उसके साथ के अमीरों ने उससे कहा कि इन बंदियों को कैम्प में नहीं छोड़ा जा सकता और इन इस्लाम के शत्रुओं को स्वतंत्र कर देना भी युद्ध के नियमों के विरुद्ध होगा। तैमूर लिखता है- 'इसलिये उन लोगों को सिवाय तलवार का भोजन बनाने के कोई मार्ग नहीं था। मैंने कैम्प में घोषणा करवा दी कि तमाम बंदी कत्ल कर दिये जायें और इस आदेश के पालन में जो भी लापरवाही करे उसे भी कत्ल कर दिया जाये और उसकी सम्पत्ति सूचना देने वाले को दे दी जाये। जब इस्लाम के गाजियों (काफिरों का कत्ल करने वालों को आदर सूचक नाम) को यह आदेश मिला तो उन्होंने तलवारें सूत लीं और अपने बंदियों को कत्ल कर दिया। उस दिन एक लाख अपवित्र मूर्ति-पूजक काफिर कत्ल कर दिये गये[xxv]।
इसी प्रकार के कत्लेआम, धर्मांतरण का विवरण कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्लतुमिश, ख़िलजी,तुगलक से लेकर तमाम मुग़लों तक का मिलता हैं। अकबर और औरंगज़ेब के जीवन के विषय में चर्चा हम अलग से करेंगे। भारत के मुसलमान आक्रमणकारियों बाबर, मौहम्मद बिन-कासिम, गौरी, गजनवी इत्यादि लुटेरों को और औरंगजेब जैसे साम्प्रदायिक बादशाह को गौरव प्रदान करते हैं और उनके द्वारा मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों व दरगाहों को इस्लाम की काफिरों पर विजय और हिन्दू अपमान के स्मृति चिन्ह बनाये रखना चाहते हैं। संसार में ऐसा शायद ही कहीं देखने को मिलेगा जब एक कौम अपने पूर्वजों पर अत्याचार करने वालों को महान सम्मान देते हो और अपने पूर्वजों के अराध्य हिन्दू देवी देवताओं, भारतीय संस्कृति एवं विचारधारा के प्रति उसके मन में कोई आकर्षण न हो।
[i] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ.164
[ii] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ.164
[iii] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ 24-25
[iv] उपरोक्त पृ. 26
[v] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम : व्हू आर दे, पृ. 6
[vi] अनेक स्थानों पर महमूद द्वारा धर्मान्तरण के लिये देखे-उतबी की पुस्तक 'किताबें यामिनी' का अनुवाद जेम्स रेनाल्ड्स द्वारा पृ. 451-463
[vii] जकरिया अल काजवीनी, के. एस. लाल, उपरोक्त पृ. 7
[viii] ईलियट एंड डाउसन, खंड-2, पृ.40 / के. एस. लाल, पूर्वोद्धत पृ. 7-8
[ix] के. एस. लाल, पूर्वोद्धत पृ. 7
[x] प्रो. एस. आर. द्गार्मा, द क्रीसेन्ट इन इंडिया, पृ. 43
[xi] ईलियट एंड डाउसन, खण्ड-2, पृ. 36
[xii] उपरोक्त, पृ.39
[xiii] उपरोक्त, पृ. 40-41
[xiv] उपरोक्त, पृ. 47
[xv] उपरोक्त, पृ. 49-50
[xvi] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम व्यू आर दे, पृ. 7
[xvii] प्रो. एस. आर. शर्मा, द क्रीसेन्ट इन इंडिया, पृ. 47
[xviii] ईलियट एंड डाउसन, खण्ड-2, पृ. 35
[xix] उपरोक्त पृ. 215
[xx] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम व्यू आर दे, पृ. 11
[xxi] उपरोक्त पृ.23
[xxii] सीताराम गोयल द्वारा 'स्टोरी ऑफ इस्लामिक इम्पीरियलिज्म इन इंडिया में उद्धत, पृ. 48
[xxiii]उपरोक्त
[xxiv] उपरोक्त, पृ.49-50
[xxv] सीताराम गोयल द्वारा 'स्टोरी ऑफ इस्लामिक इम्पीरियलिज्म इन इंडिया में उद्धत, पृ. 48

Tuesday, 8 December 2015

ज्योतिष और वास्तु से समाधान

ज्योतिष और वास्तु से समाधान
ज्योतिष और हम
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ज्योतिष क्या है ये हम सब जानते है। हम लोगों में से
दो तरह ले लोग होते है एक जो ज्योतिष को बिलकुल
भी नहीं मानते
और दूसरे जो इसको बहुत मानते हैं। हर काम ग्रह -
नक्षत्रों को देख -पूछ कर ही जीवन बिताते है।
ज्योतिष कोई पाखंड नहीं है जो माना ना जाये और
कोई अंधविश्वास भी नहीं है कि हर बात में ज्योतिष
को लाया जाये।
बल्कि यह कहेंगे की अगर हम अपनी दिनचर्या ही
ऐसी बना ले और अपने रिश्तों को निभाते हुए उनकी
मर्यादा को बनाये रखते है तो हमारे सारे ग्रह अपने
आप ही संतुलन में आ जाते है।
क्यूँ कि सभी ग्रह पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों को
किसी न किसी रूप से प्रभावित करते ही है।
जैसे सूर्य आत्मा और पिता का कारक है अगर पिता
का सम्मान किया जाय तो सूर्य अपने आप ही
संतुलित हो कर अच्छा प्रभाव देगा।
चंद्रमा माता और मन दोनों का कारक है माता का
सम्मान किया जाये तो यह संतुलित हो कर इंसान को
अवसाद की स्थिति से हटा कर अच्छी कल्पना
शक्ति देगा।
मंगल साहस,रक्त और रक्त -सम्बन्धियों का कारक है।
अगर कोई भी व्यक्ति अपने पारिवारिक रिश्तों से
अच्छी तरह निर्वाह करता है तो मंगल ग्रह अपने आप
ही अच्छा फल देने लगता है।
बुध वाणी,काव्य -शक्ति ,ज्योतिष और जासूसी और
त्वचा -सम्बन्धी रोगों का कारक है अगर कोई
व्यक्ति अपनी वाणी का सही प्रयोग करता है तो
बुध ग्रह भी संतुलित हो जायगा।
वृहस्पति भाग्य ,पुत्रकारक राज्य ,धन और आयु का
कारक होता है शरीर में मोटापे और अहंकार का
कारक भी होता है .अगर कोई व्यक्ति अपने गुरु का
सम्मान,धर्म के प्रति रूचि और बुजुर्गों का सम्मान
करता है तो यह संतुलित हो कर अच्छा फल प्रदान
करता है।
शुक्र ग्रह नेत्रों और दाम्पत्य जीवन -,ऐश्वर्य -पूर्ण
जीवन और कन्या -सन्तति का कारक है। अगर कोई
व्यक्ति अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित हो कर
रहे , स्त्री जाति का आदर करे तो यह ग्रह स्वयं ही
संतुलित हो जाता है।
शनि ग्रह वात, आयु , नौकर,हड्डियों रोग में कमर
,सर्वाइकल आदि के रोगों आदि का कारक है। अगर
कोई व्यक्ति अपने इष्ट और कुल देवता के प्रति निष्ठा
अपने देश के प्रति निष्ठा और अपने सेवकों के प्रति
दया भाव रखता है तो यह ग्रह बहुत अच्छा फल देगा।
राहू-केतू दोनों ही छाया ग्रह है. राहू अँधेरे और
भ्रम,गुप्त रोग और शत्रुओं का कारक है तो केतू ,बुद्धि-
भ्रम ,विद्या -बाधा आदि का कारक है यहाँ भी
अगर कोई व्यक्ति किसी भी भ्रम जाल में ना पड़ कर
,सही वस्तु -स्थिति को समझ कर दृढ -निश्चयी हो
कर रहे तो ये ग्रह संतुलित हो कर अच्छा ही फल देते हैं।
ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान है जिसमे हम सब को
पहले से होने वाली घटना का पता चल सकता है।
जब किसी को किसी समस्या का हल नहीं मिलता
तो वह ज्योतिष की राह पकड़ते है या ये कहेंगे कि एक
हारा हुआ इंसान ही ये सोचता हुआ ज्योतिष के पास
जाता है कि शायद यहाँ कोई हल मिल जाए।
जिस प्रकार मेडिकल जांच के लिए लोग जागरूक होते
हैं वैसे ही हमें ज्योतिष के लिए भी होना चाहिए.
और लोगों को भ्रम में ना पड़ कर एक अच्छे ज्योतिषी
की ही सलाह लेनी चाहिए।
जय श्री राम

Friday, 4 December 2015

मस्त जोक

हरियाणवी आदमी जवाब उल्टे नही देता... लोग सवाल उल्टे करते हैं। नहीं यकीन आता, तो पढ़िएमस्त जोक
जज: तू तीसरी बार अदालत आया है, तने शर्म कोनी आती?
आदमी: तू तो रोज़ आवे है, तने तो डूब के मर जाना चाहिए ।
ग्राहक: थारी भैंस की एक आंख तो खराब सै, फेर भी तू इसके 25 हज़ार रुपये मांगन लाग्र्या सै?
आदमी: तन्नै भैंस दूध खात्तर चाहिए या नैन-मटक्का करन खात्तर..?????
हज़्ज़ाम: ताऊ, बाल छोटे करने है के...?
ताऊ: बड़े कर सके है के !!
एक दिन पड़ोस का हरयाणवी छोरा आ के बोल्या-" रे चाचा, अपनी इस्त्री देदे... "
चाचा ने अपनी जनानी की ओर इसारा करया और बोला- " ले जा, वा बैठी.. "
छोरा चुप चाप देखन लाग्या...बोला- " चाचा यो नहीं, कपडे वाली.."
चाचा बोल्या- " भले मानस, यो तन्ने बगेर कपड़े दिखे है के ??? "
छोरा गुस्से में चीखा- " रा चाचाबावला ना बन, करंट वाली इस्त्री.."
चाचा- " बावले, हाथ ते लगा के देख...जे ना मारे करंट, फेर कहिये..."

Wednesday, 2 December 2015

अकबर का काला सच

अकबर के समय के इतिहास लेखक अहमद यादगार ने लिखा-
"बैरम खाँ ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बाँध दिये और उसे नौजवान शहजादे के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस काफिर का कत्ल कर दें और"गाज़ी"की उपाधि कुबूल करें, और शहजादे ने उसका सिर उसके अपवित्र धड़ से अलग कर दिया।'' (नवम्बर, ५ AD १५५६)
(तारीख-ई-अफगान, अहमद यादगार,अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ ६५-६६)
इस तरह अकबर ने १४ साल की आयु में ही गाज़ी(काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया।
इसके बाद हेमू के कटे सिर को काबुल भिजवा दिया और धड़ को दिल्ली के दरवाजे पर टांग दिया।
अबुल फजल ने आगे लिखा - ''हेमू के पिता को जीवित ले आया गया और नासिर-उल-मलिक के सामने पेश किया गया जिसने उसे इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया, किन्तु उस वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया, ''मैंने अस्सी वर्ष तक अपने ईश्वर की पूजा की है; मै अपने धर्म को कैसे त्याग सकता हूँ?
मौलाना परी मोहम्मद ने उसके उत्तर को अनसुना कर अपनी तलवार से उसका सर काट दिया।''
(अकबर नामा, अबुल फजल : एलियट और डाउसन, पृष्ठ २१)
इस विजय के तुरन्त बाद अकबर ने काफिरों के कटे हुए सिरों से एक ऊँची मीनार बनवायी।
२ सितम्बर १५७३ को भी अकबर ने अहमदाबाद में २००० दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊँची सिरों की मीनार बनवायी और अपने दादा बाबर का रिकार्ड तोड़ दिया। (मेरे पिछले लेखों में पढ़िए) यानी घर का रिकार्ड घर में ही रहा।
अकबरनामा के अनुसार ३ मार्च १५७५ को अकबर ने बंगाल विजय के दौरान इतने सैनिकों और नागरिकों की हत्या करवायी कि उससे कटे सिरों की आठ मीनारें बनायी गयीं। यह फिर से एक नया रिकार्ड था।
जब वहाँ के हारे हुए शासक दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में भरकर पानी पीने के लिए दिया गया।
अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल ने
लिखा था- ''अकबर के आदेशानुसार प्रथम ८०००
राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया, और बाद में उनका वध कर दिया गया। उनके साथ-साथ विजय के बाद प्रात:काल से दोपहर तक अन्य ४०००० किसानों का भी वध कर दिया गया जिनमें ३००० बच्चे और बूढ़े थे।''
(अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज)
चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत १२००० क्षत्राणियों ने मुगलों के हरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जरा कल्पना कीजिए विशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीखों-पुकार के बीच उसमें कूदती १२००० महिलाएँ ।
अपने हरम को सम्पन्न करने के लिए अकबर ने अनेकों हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरनठ शादियाँ की थी परन्तु कभी भी, किसी मुगल महिला को हिन्दू से शादी नहीं करने दी। केवल अकबर के शासनकाल में 38 राजपूत राजकुमारियाँ शाही खानदान में ब्याही जा चुकी थीं। १२ अकबर को, १७ शाहजादा सलीम को, छः दानियाल को, २ मुराद को और १ सलीम के पुत्र खुसरो को।
अकबर की गंदी नजर गौंडवाना की विधवा रानी दुर्गावती पर थी
''सन् १५६४ में अकबर ने अपनी हवस की शांति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया किन्तु एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंपकर आत्म हत्या कर ली। किन्तु उसकी बहिन और पुत्रवधू को को बन्दी बना लिया गया। और अकबर ने उसे अपने हरम में ले लिया। उस समय अकबर की उम्र २२ वर्ष और रानी दुर्गावती की ४० वर्ष थी।''
(आर. सी. मजूमदार, दी मुगल ऐम्पायर, खण्ड VII)
सन् 1561 में आमेर के राजा भारमल और उनके ३ राजकुमारों को यातना दे कर उनकी पुत्री को साम्बर से अपहरण कर अपने हरम में आने को मज़बूर किया।
औरतों का झूठा सम्मान करने वाले अकबर ने सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी मुस्लिम औरतों की भी अस्मत लूटी थी। इसमें मुस्लिम नारी चाँद बीबी का नाम भी है।
अकबर ने अपनी सगी बेटी आराम बेगम की पूरी जिंदगी शादी नहीं की और अंत में उस की मौत अविवाहित ही जहाँगीर के शासन काल में हुई।
सबसे मनगढ़ंत किस्सा कि अकबर ने दया करके सतीप्रथा पर रोक लगाई; जबकि इसके पीछे उसका मुख्य मकसद केवल यही था की राजवंशीय हिन्दू नारियों के पतियों को मरवाकर एवं उनको सती होने से रोककर अपने हरम में डालकर एेय्याशी करना।
राजकुमार जयमल की हत्या के पश्चात अपनी अस्मत बचाने को घोड़े पर सवार होकर सती होने जा रही उसकी पत्नी को अकबर ने रास्ते में ही पकड़ लिया।
शमशान घाट जा रहे उसके सारे सम्बन्धियों को वहीं से कारागार में सड़ने के लिए भेज दिया और राजकुमारी को अपने हरम में ठूंस दिया ।
इसी तरह पन्ना के राजकुमार को मारकर उसकी विधवा पत्नी का अपहरण कर अकबर ने अपने हरम में ले लिया।
अकबर औरतों के लिबास में मीना बाज़ार जाता था जो हर नये साल की पहली शाम को लगता था। अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे।
जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम
की औरतें जानवरों की तरह महल में बंद कर दी जाती थीं।
अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था। चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रख सकता और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो काजी ने उसे रोकने की कोशिश की। इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर शिया काजी को रख लिया क्योंकि शिया फिरके में असीमित और अस्थायी शादियों की इजाजत है , ऐसी शादियों को अरबी में "मुतअ" कहा जाता है।
अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है-
“अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं। शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था। एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”।
बैरम खान जो अकबर के पिता जैसा और संरक्षक था,
उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के समान स्त्री से शादी की ।
इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से बचाने के लिए इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे। कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था। लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं! केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त रखी गयी थी।
रणथम्भौर की सन्धि में बूंदी के सरदार को शाही हरम में औरतें भेजने की "रीति" से मुक्ति देने की बात लिखी गई थी। जिससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि अकबर ने युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों के परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को मांग लेने की एक परिपाटी बना रखी थीं और केवल बूंदी ही इस क्रूर रीति से बच पाया था।
यही कारण था की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियों के जौहर की आग में जलने की हजारों घटनाएँ हुईं ।
जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पुस्तक ''डिस्कवरी ऑफ इण्डिया'' में अकबर को 'महान' कहकर उसकी प्रशंसा की है। हमारे कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भी अकबर को एक परोपकारी उदार, दयालु और धर्मनिरपेक्ष शासक बताया है।
अकबर के दादा बाबर का वंश तैमूरलंग से था और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी और खूनी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था।
जिसके खानदान के सारे पूर्वज दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद थे और अकबर के बाद भी जहाँगीर और औरंगजेब दुनिया के सबसे बड़े दरिन्दे थे तो ये बीच में
महानता की पैदाईश कैसे हो गयी।
अकबर के जीवन पर शोध करने वाले इतिहासकार विंसेट स्मिथ ने साफ़ लिखा है की अकबर एक दुष्कर्मी, घृणित एवं नृशंश हत्याकांड करने वाला क्रूर शाशक था।
विन्सेंट स्मिथ ने किताब ही यहाँ से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था. उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था । अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था”।
चित्तौड़ की विजय के बाद अकबर ने कुछ फतहनामें प्रसारित करवाये थे। जिससे हिन्दुओं के प्रति उसकी गहन आन्तरिक घृणा प्रकाशित हो गई थी।
उनमें से एक फतहनामा पढ़िये-
''अल्लाह की खयाति बढ़े इसके लिए हमारे कर्तव्य परायण मुजाहिदीनों ने अपवित्र काफिरों को अपनी बिजली की तरह चमकीली कड़कड़ाती तलवारों द्वारा वध कर दिया। ''हमने अपना बहुमूल्य समय और अपनी शक्ति घिज़ा (जिहाद) में ही लगा दिया है और अल्लाह के सहयोग से काफिरों के अधीन बस्तियों, किलों, शहरों को विजय कर अपने अधीन कर लिया है, कृपालु अल्लाह उन्हें त्याग दे
और उन सभी का विनाश कर दे। हमने पूजा स्थलों उसकी मूर्तियों को और काफिरों के अन्य स्थानों का विध्वंस कर दिया है।"
(फतहनामा-ई-चित्तौड़ मार्च १५८६,नई दिल्ली)
महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर के अभियानों के लिए
सबसे बड़ा प्रेरक तत्व था इस्लामी जिहाद की भावना जो उसके अन्दर कूट-कूटकर भरी हुई थी।
अकबर के एक दरबारी इमाम अब्दुल कादिर बदाउनी ने अपने इतिहास अभिलेख, 'मुन्तखाव-उत-तवारीख' में लिखा था कि १५७६ में जब शाही फौजें राणाप्रताप के खिलाफ युद्ध के लिए अग्रसर हो रहीं थीं तो मैनें (बदाउनीने) ''युद्ध अभियान में शामिल होकर हिन्दुओं के रक्त से अपनी इस्लामी दाढ़ी को भिगोंकर शाहंशाह से भेंट की अनुमति के लिए प्रार्थना की।''मेरे व्यक्तित्व और जिहाद के प्रति मेरी निष्ठा भावना से अकबर इतना प्रसन्न हुआ कि उन्होनें प्रसन्न होकर मुझे मुठ्ठी भर सोने की मुहरें दे डालीं।"
(मुन्तखाब-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी, खण्ड II, पृष्ठ ३८३,अनुवाद वी. स्मिथ, अकबर दी ग्रेट मुगल, पृष्ठ १०८)
बदाउनी ने हल्दी घाटी के युद्ध में एक मनोरंजक घटना के बारे में लिखा था-
''हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर की सेना से जुड़े राजपूत, और राणा प्रताप की सेना के राजपूत जब परस्पर युद्धरत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था, तब मैनें शाही फौज के अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाये ताकि शत्रु ही मरे।
तब कमाण्डर आसफ खाँ ने उत्तर दिया कि यह जरूरी नहीं कि गोली किसको लगती है क्योंकि दोनों ओर से युद्ध करने वाले काफिर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा।''
(मुन्तखान-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी,
खण्ड II,अनु अकबर दी ग्रेट मुगल : वी. स्मिथ पुनः मुद्रित १९६२; हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल, दी मुगल ऐम्पायर :आर. सी. मजूमदार, खण्ड VII, पृष्ठ १३२ तृतीय संस्करण)
जहाँगीर ने, अपनी जीवनी, ''तारीख-ई-सलीमशाही'' में लिखा था कि ' 'अकबर और जहाँगीर के शासन काल में पाँच से छः लाख की संख्या में हिन्दुओं का वध हुआ था।''
(तारीख-ई-सलीम शाही, अनु. प्राइस, पृष्ठ २२५-२६)
जून 1561- एटा जिले के (सकित परंगना) के 8 गावों की हिंदू जनता के विरुद्ध अकबर ने खुद एक आक्रमण का संचालन किया और परोख नाम के गाँव में मकानों में बंद करके १००० से ज़्यादा हिंदुओं को जिंदा जलवा दिया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनके इस्लाम कबूल ना करने के कारण ही अकबर ने क्रुद्ध होकर ऐसा किया।
थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था. अकबर ने आदेश
दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया. और अंत में इसने दोनों ही तरफ के लोगों को अपने सैनिकों से मरवा डाला और फिर अकबर महान जोर से हंसा।
एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है। इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को मीनार से नीचे फिंकवा दिया।
अगस्त १६०० में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया पर मामला बराबरी का था।विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा। उसने किले के राजा मीरां बहादुर को संदेश भेजकर अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा। जब मीरां शान्ति के नाम पर बाहर आया तो उसे अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुकने का आदेश दिया गया क्योंकि अकबर महान को यही पसंद था।
उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गयी कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे। मीराँ के सेनापति ने इसे मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने उसके बच्चे से पूछा कि क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए उसका पिता समर्पण नहीं करेगा। यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया। यह घटना अकबर की मृत्यु से पांच साल पहले की ही है।
हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया. असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर ३६ शादियाँ करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि इस्लाम के लिए हराम है और इसीलिए इसके नाम की मस्जिद भी हराम है।
अकबर स्वयं पैगम्बर बनना चाहता था इसलिए उसने अपना नया धर्म "दीन-ए-इलाही - ﺩﯾﻦ ﺍﻟﻬﯽ " चलाया। जिसका एकमात्र उद्देश्य खुद की बड़ाई करवाना था। यहाँ तक कि मुसलमानों के कलमें में यह शब्द "अकबर खलीफतुल्लाह - ﺍﻛﺒﺮ ﺧﻠﻴﻔﺔ ﺍﻟﻠﻪ " भी जुड़वा दिया था।
उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में अस्सलाम वालैकुम नहीं बल्कि “अल्लाह ओ अकबर” कहकर एक दूसरे का अभिवादन किया जाए।
यही नहीं अकबर ने हिन्दुओं को गुमराह करने के लिए एक फर्जी उपनिषद् "अल्लोपनिषद" बनवाया था जिसमें अरबी और संस्कृत मिश्रित भाषा में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल और अकबर को खलीफा बताया गया था। इस फर्जी उपनिषद् का उल्लेख महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में किया है।
उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया। जबकि वास्तविकता ये है कि उस धर्म को मानने वाले अकबरनामा में लिखित कुल १८ लोगों में से केवल एक हिन्दू बीरबल था।
अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले। जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है जो रोगों का इलाज कर सकता है। अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी। उसके दरबारियों को तो इसलिए अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज न हो जाए।
अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग उसे पसंद नहीं।
अकबर महान ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कतल
कराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर, मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब जो इसे नापसंद थे। पूरी सूची स्मिथ की किताब में दी हुई है।
अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौ रत्नों की कहानी गढ़ी। पर असलियत यह है कि अकबर अपने
सब दरबारियों को मूर्ख समझता था। उसने स्वयं कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि उसको योग्य दरबारी नहीं मिले वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं वह खुद नहीं।
अकबरनामा के एक उल्लेख से स्पष्ट हो जाता है कि उसके हिन्दू दरबारियों का प्रायः अपमान हुआ करता था। ग्वालियर में जन्में संगीत सम्राट रामतनु पाण्डेय उर्फ तानसेन की तारीफ करते-करते मुस्लिम दरबारी उसके मुँह में चबाया हुआ पान ठूँस देते थे।
भगवन्त दास और दसवंत ने सम्भवत: इसी लिए आत्महत्या कर ली थी।
प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था। इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना। वफादार होने के बावजूद अकबर ने एक दिन क्रुद्ध होकर उसकी पूजा की मूर्तियाँ तुड़वा दी।
जिन्दगी भर अकबर की गुलामी करने के बाद टोडरमल ने अपने जीवन के आखिरी समय में अपनी गलती मान कर दरबार से इस्तीफा दे दिया और अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए प्राण त्यागने की इच्छा से वाराणसी होते हुए हरिद्वार चला गया और वहीं मरा।
लेखक और नवरत्न अबुल फजल को स्मिथ ने अकबर का अव्वल दर्जे का निर्लज्ज चाटुकार बताया। बाद में जहाँगीर ने इसे मार डाला।
फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था जिसकी कलम अपने शहंशाह को प्रसन्न करने के लिए ही चलती थी।
बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया। बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं। ध्यान रहे
कि ऐसी कहानियाँ दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम से
भी प्रचलित हैं।
एक और रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों अकबर के आदेश पर मार डाला गया ।
मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बेटी तो अकबर को दी ही जागीर के लालच में कई और राजपूत राजकुमारियों को तुर्क हरम में पहुँचाया। बाद में जहांगीर ने इसी मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया।
मानसिंह ने पूरे राजपूताने के गौरव को कलंकित किया था। यहाँ तक कि उसे अपना आवास आगरा में बनाना पड़ा क्योंकि वो राजस्थान में मुँह दिखाने के लायक नहीं था। यही मानसिंह जब संत तुलसीदास से मिलने गया तो अकबर ने इस पर गद्दारी का संदेह कर दूध में जहर देकर मरवा डाला और इसके पिता भगवान दास ने लज्जित होकर आत्महत्या कर ली।
इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लडकियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें, और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है।
अकबर शराब और अफीम का इतना शौक़ीन था, कि अधिकतर समय नशे में धुत रहता था।
अकबर के दो बच्चे नशाखोरी की आदत के चलते अल्लाह को प्यारे हो गये।
हमारे फिल्मकार अकबर को सुन्दर और रोबीला दिखाने के लिए रितिक रोशन जैसे अभिनेताओं को फिल्मों में पेश करते हैं परन्तु विन्सेंट स्मिथ अकबर के बारे में लिखते हैं-
“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था। उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था। उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था। उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी। उसके नाक के नथुने ऐसे दिखते थे जैसे वो गुस्से में हो। आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था।
अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा पीनी शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बात
करता करता भी नींद में गिर पड़ता था। वह जब ज्यादा पी लेता था तो आपे से बाहर हो जाता था और पागलों जैसी हरकतें करने लगता।
अकबर महान के खुद के पुत्र जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है।
अकबर ने एक ईसाई पुजारी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया। इससे पता चलता है कि अकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था।
कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने १५८१-८२ में इसकी किसी नीति का विरोध किया था। बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए ।
अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था। उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देते थे। फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे, या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी क़ुबूल करे।
जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरे के किले में थीं। इसी तरह के और
खजाने छह और जगह पर भी थे। इसके बावजूद भी उसने १५९५-१५९९ की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया।
अकबर के सभी धर्म के सम्मान करने का सबसे बड़ा सबूत-
अकबर ने गंगा,यमुना,सरस्वती के संगम का तीर्थनगर "प्रयागराज" जो एक काफिर नाम था को बदलकर इलाहाबाद रख दिया था। वहाँ गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो वहाँ की हिन्दू जनता ने उसका इस्तकबाल नहीं किया। यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है। अकबर ने हिन्दू राजाओं द्वारा निर्मित संगम प्रयाग के किनारे के सारे घाट तुड़वा डाले थे। आज भी वो सारे साक्ष्य वहाँ मौजूद हैं।
२८ फरवरी १५८० को गोवा से एक पुर्तगाली मिशन अकबर के पास पंहुचा और उसे बाइबल भेंट की जिसे इसने बिना खोले ही वापस कर दिया।
4 अगस्त १५८२ को इस्लाम को अस्वीकार करने के कारण सूरत के २ ईसाई युवकों को अकबर ने अपने हाथों से क़त्ल किया था जबकि इसाईयों ने इन दोनों युवकों को छोड़ने के लिए १००० सोने के सिक्कों का सौदा किया था। लेकिन उसने क़त्ल ज्यादा सही समझा ।
सन् 1582 में बीस मासूम बच्चों पर भाषा परीक्षण किया और ऐसे घर में रखा जहाँ किसी भी प्रकार की आवाज़ न जाए और उन मासूम बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी वो गूंगे होकर मर गये । यही परीक्षण दोबारा 1589 में बारह बच्चों पर किया ।
सन् 1567 में नगर कोट को जीत कर कांगड़ा देवी मंदिर की मूर्ति को खण्डित की और लूट लिया फिर गायों की हत्या कर के गौ रक्त को जूतों में भरकर मंदिर की प्राचीरों पर छाप लगाई ।
जैन संत हरिविजय के समय सन् 1583-85 को जजिया कर और गौ हत्या पर पाबंदी लगाने की झूठी घोषणा की जिस पर कभी अमल नहीं हुआ।
एक अंग्रेज रूडोल्फ ने अकबर की घोर निंदा की।
कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ डाली और उस स्थान पर नमाज पढ़ी।
1587 में जनता का धन लूटने और अपने खिलाफ हो रहे विरोधों को ख़त्म करने के लिए अकबर ने एक आदेश पारित किया कि जो भी उससे मिलना चाहेगा उसको अपनी उम्र के बराबर मुद्राएँ उसको भेंट में देनी पड़ेगी।
जीवन भर इससे युद्ध करने वाले महान महाराणा प्रताप जी से अंत में इसने खुद ही हार मान ली थी यही कारण है कि अकबर के बार बार निवेदन करने पर भी जीवन भर जहाँगीर केवल ये बहाना करके महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह से युद्ध करने नहीं गया की उसके पास हथियारों और सैनिकों की कमी है..जबकि असलियत ये थी की उसको अपने बाप का बुरा हश्र याद था।
विन्सेंट स्मिथ के अनुसार अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया। हमजबान की जबान ही कटवा डाली। मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं। उसके 300 साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरों पर अजीबोगरीब तरीकों से गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया।
मुग़ल आक्रमणकारी थे यह सिद्ध हो चुका है। मुगल दरबार तुर्क एवं ईरानी शक्ल ले चुका था। कभी भारतीय न बन सका। भारतीय राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल साम्राज्य को कभी स्थिर नहीं होने दिया। राजपूताना ने मुगलों को कभी स्वीकार नहीं किया।गुजरात, मालवा, मराठा, बिहार, बंगाल, असम तथा दक्षिण का कोई प्रदेश कभी भी मुगलों के पूर्ण अधिकार में नहीं रहा।
फिर भी कुछ चापलूस लोग अकबर को शहंशाहे हिन्द कहते हैं।

सर्दियों में बादाम से ज्यादा असरदार है चना, रोज खाएंगे तो होंगे ये ढेरों फायदे

सर्दियों में रोजाना 50 ग्राम चना खाना शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है। आयुर्वेद मे माना गया है कि चना और चने की दाल दोनों के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है। चना खाने से अनेक रोगों की चिकित्सा हो जाती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं। चने का गरीबों का बादाम कहा जाता है, क्योंकि ये सस्ता होता है लेकिन इसी सस्ती चीज में बड़ी से बड़ी बीमारियों की लड़ने की क्षमता है। चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है साथ ही दिमाग भी तेज हो जाता है। मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें। अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है। गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं। चना पाचन शक्ति को संतुलित और दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है। चने से खून साफ होता है जिससे त्वचा निखरती है।
सर्दियों में चने के आटे का हलवा कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। यह हलवा वात से होने वाले रोगों में व अस्थमा में फायदेमंद होता है।
रात को चने की दाल भिगों दें सुबह पीसकर चीनी व पानी मिलाकर पीएं। इससे मानसिक तनाव व उन्माद की स्थिति में राहत मिलती है। 50 ग्राम चने उबालकर मसल लें। यह जल गर्म-गर्म लगभग एक महीने तक सेवन करने से जलोदर रोग दूर हो जाता है।
चने के आटे की की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे-दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती हैं। भुने हुए चने रात में सोते समय चबाकर गर्म दूध पीने से सांस नली के अनेक रोग व कफ दूर हो जाता हैं।
25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है। यदि समान मात्रा में जौ चने की रोटी भी दोनों समय खाई जाए तो जल्दी फायदा होगा।
चने को पानी में भिगो दें उसके बाद चना निकालकर पानी को पी जाएं। शहद मिलाकर पीने से किन्हीं भी कारणों से उत्पन्न नपुंसकता समाप्त हो जाती है।
हिचकी की समस्या ज्यादा परेशान कर रही हो तो चने के पौधे के सूखे पत्तों का धुम्रपान करने से शीत के कारण आने वाली हिचकी तथा आमाशय की बीमारियों में लाभ होता है।
पीलिया में चने की दाल लगभग 100 ग्राम को दो गिलास जल में भिगोकर उसके बाद दाल पानी में से निकलाकर 100 ग्राम गुड़ मिलाकर 4-5 दिन तक खाएं राहत मिलेगी।
देसी काले चने 25-30 ग्राम लेकर उनमें 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिला लें चने को कुछ घंटों के लिए भिगो दें। उसके बाद चने को किसी कपड़े में बांध कर अंकुरित कर लें। सुबह नाश्ते के रूप में इन्हे खूब चबा चबाकर खाएं।
बुखार में ज्यादा पसीना आए तो भूने को पीसकर अजवायन और वच का चूर्ण मिलाकर मालिश करनी चाहिए।
चीनी के बर्तन में रात को चने भिगोकर रख दे। सुबह उठकर खूब चबा-चबाकर खाएं इसके लगातार सेवन करने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है व पुरुषों की कमजोरी से जुड़ी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। भीगे हुए चने खाकर दूध पीते रहने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।
दस ग्राम चने की भीगी दाल और 10 ग्राम शक्कर दोनों मिलाकर 40 दिनों तक खाने से धातु पुष्ट हो जाती है।
गर्म चने रूमाल या किसी साफ कपड़े में बांधकर सूंघने से जुकाम ठीक हो जाता है। बार-बार पेशाब जाने की बीमारी में भुने हूए चनों का सेवन करना चाहिए। गुड़ व चना खाने से भी मूत्र से संबंधित समस्या में राहत मिलती है। रोजाना भुने चनों के सेवन से बवासीर ठीक हो जाता है।