Tuesday, 1 September 2015

देशभक्त नाथूराम गोडसे

आमतौर पर बिल्कुल सादा और सरल जीवन जीने वाले, राजनीतिक छल-कपट से कोसों दूर, जनसेवी,ईश्वरभक्त,साधारण कार्यकर्ताओं से भी बिल्कुल आत्मीयता से मिलने वाले,स्वयं से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहकर भी हम जैसे अतिसाधारण लोगों की समस्याएँ सुनकर उन्हें दूर करने वाले उन्नाव के सांसद एवं महान संत श्री स्वामी साक्षीजी महाराज ने आखिर नाथूराम गोडसे को देशभक्त क्यों कह दिया..??
आखिर क्यों आज तक नाथूराम जी की अस्थियां विसर्जित नहीं की गयीं..? आखिर क्या कहा था उन्होनें अपने अन्तिम बयान में..?
इसके लिए आप महान राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे जी के कोर्ट में दिए गए बयान को आज RTI के माध्यम से मंगवा कर पढ़ सकते है।
कुछ कारण निम्न है और अंत में पुस्तक का नाम भी है।
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गाँधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गाँधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गाँधी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 15000 हिन्दु मारे गए व 20000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन्
खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6. गाँधी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7. गाँधी जी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया जो पाकिस्तान समर्थक थे।
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समित (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु
गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने दूखी होकर निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि पहले उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को सरकारी पैसे की बर्बादी कहकर निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर
दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने
दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था।
केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी और उसी पैसे का भारत के खिलाफ युद्ध में इस्तेमाल किया।
17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया।
18. द्वितीय विश्वयुद्ध मे गाँधी ने भारतीय सैनिकों को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया, जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है
.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़? विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी...मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५
टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे
बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से
भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा....फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया....और वो हिंदू--- गाँधी मरता है तो मरने दो ---- के नारे लगा करवाहा से भीगते हुए गये थे...,,, रिपोर्ट --- जस्टिस कपूर.. सुप्रीम
कोर्ट..... फॉर गाँधी वध क्यो ?
२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे
की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार
सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन
विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह
हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से
राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस
तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ
दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन
अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर
ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार
सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए,
अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे
क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक
कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते
थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता।
पढ़िये 'गांधी बेनकाब - हंसराज रहबर' और 'गाँधी वध क्यों'?
नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान...
जिसे सुनकर न्यायालय में उपस्थित लोगों की आँखों से आंसू बहने लगे थे जिसमे से कई तो फूट-फूट कर रोने लगे थे|
एक जज महोदय ने अपनी टिप्पणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्थित लोगों को जूरी बना जाता और उनसे फैसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से
नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते |
नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा -- सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है |
महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और
जज दोनों थे |
गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया |
गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओं की कीमत पर किये जाते थे
जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ
भरा करती थी उसी ने गुप्त रूप से पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने
नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया |
मुस्लिम तुस्टीकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े
कर दिए गये और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई
भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई |
जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गांधी की सहमति से इस देश
को काट डाला जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है
तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया, मैं साहस पूर्वक
कहता हूँ कि गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गये उन्होंने
स्वयं को पाकिस्तान का का पिता होना सिद्ध किया|
में कहता हु की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई
थी जिसकी नीतियों और कार्यो से करोडों हिन्दुओ को केवल
बर्बादी और विनाश ही मिला और ऐसे कोई
क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस
अपराधी को सजा दिलाई जा सके इसलिये मैंने इस घातक
रास्ते का अनुसरण किया|
मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा जो मैंने किया उस
पर मुझे गर्व है| मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के
इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में
किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे |
जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक
मेरी अस्थियों का विसर्जन मत करना..|
नोट- अमर बलिदानी पंडित नाथूराम गोडसे
जी की अस्थियाँ आज तक विसर्जित नहीं की गयीं हैं|

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