Friday, 25 May 2018

नैकिदेवी -गुजरात की रानी

जंग का मैदान था, सन था 1178, गुजरात के सोलंकी राजा अजयपाला की मृत्यु को 7 साल हो चुके है सिंघासन पर बैठा है उनका 8-10 साल का पुत्र।
और राजधानी के करीब 40 किलोमीटर पर मोहमद गोरी अपनी सेना के साथ शिविर लगाये, मुल्तान को फ़तह करने के बाद ,गुजरात को लूटने के मंसूबे पाले बैठा है।
तभी गोरी का एक सन्देश वाहक आता है और फरमान सुनाता है, की रानी और बालक के साथ राज्य का सारा धन उसे दे दो तो वो बिना खून खराबे के लौट जायेगा।
रानी नैकिदेवी, जो कदमबा (गोवा) की राजकुमारी और गुजरात की रानी थी, ने सन्देश वाहक को, ये शर्त मान लेने का आश्वाशन देकर वापस भेज देती है।
सन्देश वाहक जैसे ही गोरी को ये बताता है, की उसकी शर्ते मानली गई है, गोरी ख़ुशी से झूम उठता है।
पर ये क्या अचानक, उसे अपने खेमे की तरफ़ घोड़े और हाथियों के झुण्ड के आने की आवाज़ आती है।
आसमान में उडती धूल ये बताने के लिए काफी है, की सोलंकी साम्राज्य की रानी अपना गुजरात इतनी आसानी से नही देगी।
अभी गोरी कुछ समझ ही पाता की, रानी नैकिदेवी की सेना मलेच्छो पर टूट पड़ती है,
दोनों हाथो में तलवार लिए रानी नैकिदेवी, मलेछो के सर धड से अलग करती चली जाती है,
तभी उसकी तेज़ धार की तलवार का सामना गोरी से हो जाता है, कुछ इतिहास कारो का कहना है की रानी ने उसके अग्रभाग पर हमला कर उसके आला ए तनाशुल (
लिंग) को घायल कर दिया था।
उसके बाद रक्तरंजित गोरी अपना घोडा लेकर सीधे मुल्तान की तरफ भागा, और उसने अपने सैनिको को बोल दिया था की रास्ते में कही नही रुकना है, मुल्तान भागते समय, उसका घोडा अगर गश खाकर ज़मीन पर गिर जाता था, तो गोरी घोडा बदल लेता था, पर रुकता नही था।
उसके बाद गोरी में इतना खौफ बैठ गया, की फिर उसने दिल्ली पर तो वार किया पर कभी गुजरात की तरफ नही देखा।
नैकिदेवी की गाथा, इतिहास में कही दफन रह गई, पर भारतीय नारीयो को स्वाभिमान से जीना सीखा गई।