**जय श्री राम** मित्रो और गुरुजनों को सादर नमन अक्सर लोग मुझसे कहते हैं मैं इतिहास पे सिर्फ पोस्ट क्यों करती हूँ मैं इतिहास पे सिर्फ पोस्ट इसलिए करती हूँ हमारे ग़ुलाम हो चुके मानसिकता को बदलना हैं आनेवाली नस्ल दूषित इतिहास के बदले सच्चाई पढ़े की भारत ने कभी ग़ुलामी की ही नहीं मकॉलय ने अंग्रेज़ गवर्नर ह्यूगो को पत्र लिखते समय लिखे थे भारत की रीढ़ को तोडना हैं तो हिन्दुओं की गौरवशाली इतिहास को खत्म कर के इनको हमेशा के लिए इनकी नज़रों में लाचार हारा हुआ ग़ुलाम बनाना ज़रूरी हैं और इसी षड्यंत्र के तहत इतिहास में ग़ुलाम कर दिया गया हकीकत में जो न हो पाया वो इतिहास में कर दिया गया, दूषित कर दिया हमें गोरे अंग्रेजों से छुटकारा मिलने के बाद काले अंग्रेजों ने ग़ुलामी की परम्परा आगे रखते हुए भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद ने सिकंदर , अकबर लूटेरों को महान बता दिया और इस धरती के पूत महाराणा प्रताप , शिवाजी , लचित बोरफुकन, ललितादित्य मुक्तापिड़ और भी कई पुरखों के इतिहास गबकर दिए गए जिसे आज हम ढूंढ ढूंढ के आपके सामने लाते हैं , महाराणा मोकल के इतिहास
राणा लाखा की मृत्यु होने पर उसका 12 वर्षीय पुत्र मोकल मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसका जन्म रणमल की बहन हंसाबाई की कोख से हुआ था। मोकल की अल्पायु के कारण स्वर्गीय महाराणा लाखा का बड़ा पुत्र चूण्डा उसका अभिभावक बना रणमल्ल - ये मंडोवर के राव चूंडा के बड़े पुत्र थे | राव चूंडा ने किसी कारण से नाराज़ होकर रणमल्ल को मंडोवर से निकाल दिया | रणमल्ल ५०० सवारों सहित चित्तौड़ आए और यहीं रहने लगे | महाराणा लाखा के बड़े पुत्र कुंवर चूंडा ने जिद करके महाराणा को रणमल्ल की बहिन हंसाबाई से विवाह करने के लिए राजी किया ,कुंवर चूंडा ने प्रतिज्ञा की कि "हंसाबाई जी और महाराणा का जो भी पहला पुत्र होगा, वही मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठेगा और मैं उसकी सेवा में रहूंगा" इस प्रतिज्ञा के कारण कुंवर चूंडा को "मेवाड़ का भीष्म पितामह" भी कहा जाता है विवाह के १३ माह बाद महाराणा लाखा व हंसाबाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जो मोकल नाम से प्रसिद्ध हुए | कुंवर मोकल महाराणा लाखा के ८वें पुत्र थे , १४०६-०७ ई. में महाराणा लाखा का देहान्त हुआ (महाराणा लाखा के देहान्त का वर्ष १३९७ ई. बताना कर्नल जेम्स टॉड की गलती है व १४२० ई. बताना कवि लोगों की गलती है) | कुंवर चूंडा ने अपने छोटे भाई मोकल का हाथ पकड़कर उन्हें मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, रानी हंसाबाई जब सती होने जा रही थीं, तब कुंवर चूंडा ने उनको रोक लिया और कहा कि आपको बाईजीराज बनकर रहना चाहिए (राज करने वाले शासक की माता को बाईजीराज कहते हैं) | १४०७ ई. में महाराणा मोकल का राज्याभिषेक हुआ ,महाराणा मोकल की उम्र कम होने के कारण राज्य का सारा काम कुंवर चूंडा की देख-रेख में होता देख कुछ सर्दारों ने महाराणा और उनकी माता हंसाबाई के कान भरने शुरु किये ,बाईजीराज हंसाबाई ने कुंवर चूंडा से कहा कि आप मेवाड़ छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जावें, तो ठीक रहेगा ,कुंवर चूंडा अपने सभी छोटे भाईयों समेत मेवाड़ से चले गए, सिवाय राघवदास के | राघवदास कुंवर चूंडा के छोटे भाई व महाराणा लाखा के दूसरे बड़े पुत्र थे | कुंवर चूंडा ने राघवदास को महाराणा मोकल का संरक्षक नियुक्त किया | हालांकि महाराणा मोकल के दिमाग पर केवल उनके मामा रणमल्ल की बात ही असर करती थी | राज्य का सारा काम रणमल्ल ही करता था | १४१० ई. में मंडोवर के राव चूंडा का देहान्त हुआ और उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हुआ, राव चूंडा के बड़े बेटे रणमल्ल ने कई राठौड़ साथियों और महाराणा मोकल की मेवाड़ी फौज लेकर मंडोवर पर अधिकार किया ,इस लड़ाई में रणमल्ल के भतीजे नरबद की एक आँख फूट गई | महाराणा मोकल उसे चित्तौड़ ले आए और कायलाणा का पट्टा जागीर में दिया |
नागौर के हाकिम फीरोज़ खां ने ६०,००० सैनिकों की सेना लेकर मेवाड़ पर चढाई की महाराणा मोकल भी सामना करने ५०६०मेवाड़ी फौज के साथ निकले और गाँव जोताई के चौगान में पड़ाव डाला रात के वक्त फीरोज खां ने हमला कर दिया | महाराणा को एेसी धोखेबाजी की बिल्कुल भनक तक न थी | महाराणा का घोड़ा मारा गया | डोडिया धवल के पोते सबलसिंह ने अपना घोड़ा महाराणा को दिया और खुद वीरगति को प्राप्त हुए | महाराणा मोकल पराजित होकर चित्तौड़ आ गए इस युद्ध में २,००० मेवाड़ी सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए फीरोज खां कुल मेवाड़ को लूटते हुए मालवा की तरफ निकला |
राणा लाखा की मृत्यु होने पर उसका 12 वर्षीय पुत्र मोकल मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसका जन्म रणमल की बहन हंसाबाई की कोख से हुआ था। मोकल की अल्पायु के कारण स्वर्गीय महाराणा लाखा का बड़ा पुत्र चूण्डा उसका अभिभावक बना रणमल्ल - ये मंडोवर के राव चूंडा के बड़े पुत्र थे | राव चूंडा ने किसी कारण से नाराज़ होकर रणमल्ल को मंडोवर से निकाल दिया | रणमल्ल ५०० सवारों सहित चित्तौड़ आए और यहीं रहने लगे | महाराणा लाखा के बड़े पुत्र कुंवर चूंडा ने जिद करके महाराणा को रणमल्ल की बहिन हंसाबाई से विवाह करने के लिए राजी किया ,कुंवर चूंडा ने प्रतिज्ञा की कि "हंसाबाई जी और महाराणा का जो भी पहला पुत्र होगा, वही मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठेगा और मैं उसकी सेवा में रहूंगा" इस प्रतिज्ञा के कारण कुंवर चूंडा को "मेवाड़ का भीष्म पितामह" भी कहा जाता है विवाह के १३ माह बाद महाराणा लाखा व हंसाबाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जो मोकल नाम से प्रसिद्ध हुए | कुंवर मोकल महाराणा लाखा के ८वें पुत्र थे , १४०६-०७ ई. में महाराणा लाखा का देहान्त हुआ (महाराणा लाखा के देहान्त का वर्ष १३९७ ई. बताना कर्नल जेम्स टॉड की गलती है व १४२० ई. बताना कवि लोगों की गलती है) | कुंवर चूंडा ने अपने छोटे भाई मोकल का हाथ पकड़कर उन्हें मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, रानी हंसाबाई जब सती होने जा रही थीं, तब कुंवर चूंडा ने उनको रोक लिया और कहा कि आपको बाईजीराज बनकर रहना चाहिए (राज करने वाले शासक की माता को बाईजीराज कहते हैं) | १४०७ ई. में महाराणा मोकल का राज्याभिषेक हुआ ,महाराणा मोकल की उम्र कम होने के कारण राज्य का सारा काम कुंवर चूंडा की देख-रेख में होता देख कुछ सर्दारों ने महाराणा और उनकी माता हंसाबाई के कान भरने शुरु किये ,बाईजीराज हंसाबाई ने कुंवर चूंडा से कहा कि आप मेवाड़ छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जावें, तो ठीक रहेगा ,कुंवर चूंडा अपने सभी छोटे भाईयों समेत मेवाड़ से चले गए, सिवाय राघवदास के | राघवदास कुंवर चूंडा के छोटे भाई व महाराणा लाखा के दूसरे बड़े पुत्र थे | कुंवर चूंडा ने राघवदास को महाराणा मोकल का संरक्षक नियुक्त किया | हालांकि महाराणा मोकल के दिमाग पर केवल उनके मामा रणमल्ल की बात ही असर करती थी | राज्य का सारा काम रणमल्ल ही करता था | १४१० ई. में मंडोवर के राव चूंडा का देहान्त हुआ और उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हुआ, राव चूंडा के बड़े बेटे रणमल्ल ने कई राठौड़ साथियों और महाराणा मोकल की मेवाड़ी फौज लेकर मंडोवर पर अधिकार किया ,इस लड़ाई में रणमल्ल के भतीजे नरबद की एक आँख फूट गई | महाराणा मोकल उसे चित्तौड़ ले आए और कायलाणा का पट्टा जागीर में दिया |
नागौर के हाकिम फीरोज़ खां ने ६०,००० सैनिकों की सेना लेकर मेवाड़ पर चढाई की महाराणा मोकल भी सामना करने ५०६०मेवाड़ी फौज के साथ निकले और गाँव जोताई के चौगान में पड़ाव डाला रात के वक्त फीरोज खां ने हमला कर दिया | महाराणा को एेसी धोखेबाजी की बिल्कुल भनक तक न थी | महाराणा का घोड़ा मारा गया | डोडिया धवल के पोते सबलसिंह ने अपना घोड़ा महाराणा को दिया और खुद वीरगति को प्राप्त हुए | महाराणा मोकल पराजित होकर चित्तौड़ आ गए इस युद्ध में २,००० मेवाड़ी सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए फीरोज खां कुल मेवाड़ को लूटते हुए मालवा की तरफ निकला |
महाराणा मोकल इस पराजय का जवाब देना जरुरी समझकर १२,००० मेवाड़ी फौज के साथ निकले फीरोज़ खां भी सादड़ी और प्रतापगढ़ के पहाड़ों की तरफ आया और जावर में पड़ाव डाला , जावर में दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसमें फीरोज़ खां बुरी तरह पराजित होकर भाग निकला (चित्तौड़ के समिद्धेश्वर महादेव मन्दिर पर इस विजय की प्रशस्ति है), महाराणा मोकल ने जहांजपुर में दूसरी बार फीरोज़ खां को शिकस्त दी(महाराणा की इस विजय का उल्लेख एकलिंग जी के मन्दिर के दक्षिणद्वार की प्रशस्ति में है) १४३२ ई.
म्लेच्छ अहमदशाह ने १,१२,००० बड़ी फौज के साथ मेवाड़ पर चढाई की उसने डूंगरपुर, देलवाड़ा, केलवाड़ा वगैरह मेवाड़ी इलाके लूट लिए १४३३ ई. महाराणा मोकल भी मेवाड़ी फौज के साथ चित्तौड़ से निकले महाराणा , केलवाड़ा में भयंकर युद्ध हुआ मेवाड़ी शेरो की संख्या ९-१० हज़ार के बीच थी और मलेचो की संख्या लाखों में हल्दीघाटी से भी बड़े बड़े २८ युद्ध हुए मेवाड़ और पठान , मुग़ल , अस्सीरिया , हुण के साथ जिसमे मुट्ठी भर मेवाड़ी सेना भाड़ी पड़े हैं, अहमदशाह के साथ युद्ध का निर्णय महाराणा मोकल की हार निश्चित थी क्यों की धूर्त मलेच्छो की आदत थी धूर्तता करना महाराणा मोकल निरन्तर युद्ध लड़ रहे थे मेवार की सेना सञ्चालन के लिए आर्थिक संकट से भी गुजर रहे थे इसलिए केलवाड़ा के युद्ध में तोपो का उपयोग करने में असमर्थ थे महाराणा , इन सभी बातो का फ़ायदा उठाते हुए अहमदशाह ने १६ तोप और १२,००० घुड़सवार सैनिक और १,०००,०० पैदल सैनिक के साथ आक्रमण कर दिया था मेवार पर, परंतु मेवार की धरती हमेसा शेर जनने हैं राणा मोकल के सेना में राव विक्रम सिंह के साथ उनके १२ वर्षीय पुत्र राव शेर सिंह भी थे जैसा नाम वैसा काम किया जिस तोप के सहारे मलेच्छ महाराणा मोकल को हरानेवाले थे उन तोपों के अस्लागड़ में रात के समय मशाल हाथ में लिए घुस गये और पूरा असलागड़ो को जला डाला और राव शेर की इस बलिदानी के साथ केलवाड़ा की युद्ध का निर्णय बदल गया अहमद शाह के सेना पर मुट्ठी भर मेवाड़ी रणबांकुरे भाड़ी पड़ गया , जैसे की इन मलेच्छो की आदात रेह चुकी हैं मृत्यु को सामने देख महाराणा मोकल के सामने घुटने टेक दिए , और क़ुरान की कसम खाते हुए की दोबारा मेवार की धरती पे आक्रमण नहीं करेगा , ना केवल मेवार छोड़ा अपितु गुजरात की पावनभूमि तक को छोड़ कर भाग गया था ।
म्लेच्छ अहमदशाह ने १,१२,००० बड़ी फौज के साथ मेवाड़ पर चढाई की उसने डूंगरपुर, देलवाड़ा, केलवाड़ा वगैरह मेवाड़ी इलाके लूट लिए १४३३ ई. महाराणा मोकल भी मेवाड़ी फौज के साथ चित्तौड़ से निकले महाराणा , केलवाड़ा में भयंकर युद्ध हुआ मेवाड़ी शेरो की संख्या ९-१० हज़ार के बीच थी और मलेचो की संख्या लाखों में हल्दीघाटी से भी बड़े बड़े २८ युद्ध हुए मेवाड़ और पठान , मुग़ल , अस्सीरिया , हुण के साथ जिसमे मुट्ठी भर मेवाड़ी सेना भाड़ी पड़े हैं, अहमदशाह के साथ युद्ध का निर्णय महाराणा मोकल की हार निश्चित थी क्यों की धूर्त मलेच्छो की आदत थी धूर्तता करना महाराणा मोकल निरन्तर युद्ध लड़ रहे थे मेवार की सेना सञ्चालन के लिए आर्थिक संकट से भी गुजर रहे थे इसलिए केलवाड़ा के युद्ध में तोपो का उपयोग करने में असमर्थ थे महाराणा , इन सभी बातो का फ़ायदा उठाते हुए अहमदशाह ने १६ तोप और १२,००० घुड़सवार सैनिक और १,०००,०० पैदल सैनिक के साथ आक्रमण कर दिया था मेवार पर, परंतु मेवार की धरती हमेसा शेर जनने हैं राणा मोकल के सेना में राव विक्रम सिंह के साथ उनके १२ वर्षीय पुत्र राव शेर सिंह भी थे जैसा नाम वैसा काम किया जिस तोप के सहारे मलेच्छ महाराणा मोकल को हरानेवाले थे उन तोपों के अस्लागड़ में रात के समय मशाल हाथ में लिए घुस गये और पूरा असलागड़ो को जला डाला और राव शेर की इस बलिदानी के साथ केलवाड़ा की युद्ध का निर्णय बदल गया अहमद शाह के सेना पर मुट्ठी भर मेवाड़ी रणबांकुरे भाड़ी पड़ गया , जैसे की इन मलेच्छो की आदात रेह चुकी हैं मृत्यु को सामने देख महाराणा मोकल के सामने घुटने टेक दिए , और क़ुरान की कसम खाते हुए की दोबारा मेवार की धरती पे आक्रमण नहीं करेगा , ना केवल मेवार छोड़ा अपितु गुजरात की पावनभूमि तक को छोड़ कर भाग गया था ।
परंतु जैसे की मलेच्छो की फितरत मोहम्मद घोड़ी की कहानी फिर दोहराया और मेवार पर रना कुम्भा जब गद्दी पर विराजमान हुआ मेवार की धरती पर अहमद शाह ने फिर आक्रमण किया पर तब फ़िर से हार का सामना किया अहमद शाह ने इस बारे में अगले भाग में बताएंगे ।
निर्माण कार्य - महाराणा मोकल ने चित्तौड़ में द्वारिकानाथ व समिद्धेश्वर मन्दिर बनवाया | कैलाशपुरी में एकलिंग जी के मन्दिर के चारों तरफ की कोट बनवाई | यहीं अपने छोटे भाई बाघसिंह के नाम पर बाघेला तालाब भी बनवाया | दान व भेंट - महाराणा मोकल ने पुष्कर तीर्थ पर स्वर्ण का तुलादान किया | महाराणा ने वांघनवाड़ा व रामा गाँव एकलिंग जी के भेंट किए | म्लेच्छ अहमदशाह को महाराणा मोकल से परास्त होना परा...
* महाराणा मोकल के 7 पुत्र हुए -
* महाराणा मोकल के 7 पुत्र हुए -
1) महाराणा कुम्भा
2) कुंवर क्षेमकरण - इन्हें सादड़ी की जागीर मिली
3) कुंवर शिवा
4) कुंवर सत्ता
5) कुंवर नाथसिंह
6) कुंवर वीरमदेव
7) कुंवर राजधर
* बाईसा लालबाई - ये महाराणा मोकल की पुत्री थीं | इनका विवाह गागरोन के खींची राव अचलसिंह से हुआ |
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जय एकलिंग
MANISHA SINGH